भारतीय  जनता  पार्टी  अब  पूरी  तरह  से  मोदीमय  होती  दिख  रही  है  राजधानी   स्थित  तालकटोरा स्टेडियम  में  जिस  प्रकार  से  राष्ट्रीय  अध्यक्ष राजनाथ  सिंह  ने  मोदी  को  माला  पहनाकर  करतल ध्वनि  से  स्वागत  करने  से  मोदी  की  आधी  ताजपोशी  और  प्रधानमंत्री  पद  की  दावेदारी  को मजबूत करने  की  अपौचारिकता  प्रारम्भ  कर  दी पर  आधी  लड़ाई  भाजपा  के  कुनबे  एनडीए  से  बाकी  है , जहाँ जेडीयू   नरेन्द्रमोदी  विरोधी  बन प्रधानमंत्री  दावेदार  को  इनकार  करता  रहा  है  और  अल्पसंख्यक  वोट बैंक  विरोधी  मान  बिहार  चुनाव  में  मोदी  प्रचार  के  लिए  साफ़  तौर  पर मना  कर  करता रहा है , उससे तो मोदी का खब्बू प्रधानमंत्री का सपना काफी मुश्किल नजर आता है |    
अमेरिका  नरेन्द्रमोदी  को  जहाँ  वीजा  देने  से  साफ़  तौर  से कोताही  बरतता रहा  है ,हम  कैसे  ऐसे प्रधानमंत्री  की  कल्पना  करें  जिसकी  अंर्तराष्ट्रीय छवि  पहले  से  ही  धूमिल  है, खैर अंर्तराष्ट्रीय छवि को छोड़ दें तो भारत में क्या छवि है ये भी बमुश्किल ही तय हो पायेगा पर गुजरात में मोदी का तीसरी बार सत्तासीन होना भाजपा के लिए शुभ संकेत हैं | मोदी को भाजपा और गुजरात नही बल्कि औधिगिक धराने विकास पुरुष के रूप पूजता है ,उनके कार्यों के महिमामंडन का गान करता फिरता है | न्यायमूर्ति काटजू ने अपने लेख में जो सवाल उठाए हैं, उन्हें मैं वैसे के वैसे आपके सामने रखता हूं। वे कहते हैं: ‘‘मेरे लिए विकास का एक ही मतलब होता है और वह यह कि उससे आमतौर पर जनता का जीवन-स्तर ऊंचा उठना चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता है तब बड़े औद्योगिक घरानों को छूट देना, उन्हें सस्ते में जमीन और बिजली देना आदि को हम कैसे विकास कह सकते हैं?’’ 
इतना कह कर काटजू कई आंकड़े पेश करते हैं: ‘‘आज गुजरात में अड़तालीस फीसद बच्चे कुपोषण के शिकार हैं जो देश के औसत से कहीं ज्यादा है। गुजरात में बाल-मृत्यु की और प्रसव के दौरान माताओं की मृत्यु-दर ज्यादा है। आदिवासियों और पिछड़ी जातियों में गरीबी का औसत सत्तावन फीसद है। रामचंद्र गुहा अपने एक ताजा लेख में बताते हैं कि गुजरात में पर्यावरण का विनाश तेजी से हो रहा है। शिक्षा का स्तर गिरता जा रहा है और बच्चों में कुपोषण अस्वाभाविक दर से ऊंचा है। 2010 में संयुक्त राष्ट्र के विकास-अध्ययन में स्वास्थ्य, शिक्षा, आय आदि को ध्यान में रख कर बताया गया था कि गुजरात हमारे देश में आठवें स्थान पर आता है।’’ फिर काटजू सवाल उठाते हैं कि क्या व्यापारिक घरानों के यह कहने से कि गुजरात व्यापारियों के लिए बहुत अनुकूल है, हम यह मान लें कि बस, भारत में ये ही लोग तो हैं जिनका कोई मतलब है!  
काटजू के दिए गए आकडे से साफ़ तौर पर जाहिर है की जमीनी स्तर की हकीकत क्या है ,जहाँ मोदीमय से गुंजायमान भाजपा काफी उत्साहित है वहीँ काटजू के बयान और दिए आकडे ने भाजपा से सकते में है और अरुण जेटली काटजू के इस्तीफे की मांग तक उतारूँ हैं |
हम जानते हैं कि गुजरात भाजपाइयों की अंतिम पनाहगाह है। वहां संघ परिवार की प्रयोगशाला बनाई गई थी। अब वह नरेंद्र मोदी का चरागाह है। भाजपा के पास दूसरे राज्य भी हैं, लेकिन गुजरात को उसने अपनी नाक का सवाल बना लिया है। दंगों के बाद का चुनाव जब नरेंद्र मोदी ने जीता था तब अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था: हम गुजरात जीत गए हैं, हिंदुस्तान हार गए हैं! आज भाजपाई अटल जी के कथन का आधा ही हिस्सा याद करते हैं और गुजरात को हर महिमा से मंडित दिखाना चाहते हैं। सारे व्यापारिक घराने गुजरात के मुख्यमंत्री की कदमपोशी में लगे हैं यह देख कर क्या अरुण जेटली को आपातकाल की याद नहीं आती, जब लोग ये ही थे? फर्क सिर्फ इतना था कि तब कदम इंदिरा गांधी के थे। 
इतिहास गवाह है कि संपत्ति हमेशा सत्ता का साथ खोजती है और अगर दोनों का रंग काला हो तब तो यारी गहरी छनती है। इसलिए हम इस संबंध की छानबीन अभी न करें और यह देखें कि क्या गुजरात के अवाम तक विकास की वह सुगंध पहुंची है, जिससे भाजपाई मदमस्त हुए जा रहे हैं? काटजू ने जिन आंकड़ों का जिक्र किया है वे उनके दिमाग की उपज नहीं हैं, बल्कि कई अध्ययनों से निकले हैं। क्या गुजरात सरकार इसे खारिज करने या इसकी जांच कराने को तैयार है? सारा सौराष्ट्र पानी के भयंकर संकट से गुजर रहा है। सारे गुजरात में जिस विकास की बाढ़ आई हुई है, उसके कुछ छींटे यहां क्यों नहीं पड़े?
अगर भाजपा मोदीमय होकर अपने तुरुप के इक्के का प्रयोग कर हिन्दू कार्ड खेल मोदी को प्रधानमंत्री का दावेदार आधिकारिक तौर पर नियुक्त करती है तो इसमें केवल उनकी मर्जी नही चलेगी बल्कि अंतिम और निर्णयाक भूमिका तो जनता की ही होगी |
 लेखक -आशीष शुक्ल (कुछ अंश जनसत्ता के लोकतान्त्रिक मिजाज के खिलाफ आर्टिकल से ) 
