गुलाब बाई अभिनेत्री के अलावा बेहतरीन गायिका भी थीं। उनके कुछ गीत तो आज भी लोकगायकों और ग्रामीण जनता की जुबान पर हैं, जैसे - पान खाए सैया हमार, नदी नारे न जाओ श्याम पैया परूं, मोहे पीहर में मत छेड़, जलेबी बाई,भरतपुर लुट गयो हाय मेरी अम्मा, पटना शहरिया में जाओ रानी, अकेली डर लागे, गोरखपुर की एक बंजारन, हमरा छोटका सा बलमुवा आदि। उनके अधिकतर गीतों का बॉलीवुड के लोगों ने उनके जीवनकाल में ही अपनी फिल्मों में इस्तेमाल तो किया, लेकिन क्रेडिट में उनका नाम तक देना ज़रूरी नहीं समझा। गुलाब बॉलीवुड के इस सलूक से बेहद मर्माहत हुई थी। 1996 में उनकी मृत्यु के बाद उनके कुछ शागिर्द उनकी विरासत संभाल तो रहे हैं, लेकिन उत्तर भारत के मेलों-ठेलों में ' द ग्रेट गुलाब बाई थियेट्रिकल कंपनी ' नाम से कई थियेटर कंपनियां जिस स्तर पर अश्लीलता फैलाने में लगी हैं, उसे देखते हुए नौटंकी जैसी जनप्रिय लोकनाट्य विधा का भविष्य अंधकारमय ही लगता है।
                                                       लेखक - ध्रुव गुप्ता 
