यह तेज़ाबी समाज कौन सा हैं.. ??

RAFTAAR LIVE
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कोलकाता में पैदा हुई एक नन्ही सी जान जब बड़ी हुई तब उसके माता-पिता ने उसें उसके मौसा-मौसी को गोद दें दिया.बच्ची का स्कूल में एडमिशन भी हुआ और सब कुछ ठीक चल रहा था किअचानक दस साल की उम्र में उसें मालूम चला कि उसके माता-पिता तो एक सड़क दुर्घटना में दुनिया से ही रूखसत हो चले.अब वो पूरी तरह अपनी 'मौसी' और 'मौसा' पर निर्भर थी.पर यहां भी सपनों के पंख निकलते उससें पहले ही उसें काट दिया गया.ग्यारह साल की अनु का स्कूल छुड़वा दिया गया और उसें बक़ायदा कहा गया कि वो कही से भी लाएं,कैसे भी लाएं लेकिन पैसा कमा कर लाएं.. |

क्या करती अनु.? अपने मौसा-मौसी के बारें में सोचती..अपने बारें में..या अपने छोटे भाई के बारें में..?

वो सुई-धागे का काम कर के जैसे-तैसे अपना और सबका ख्याल रखने लगी..
इसी दौरान उसके दिल में बसने वाली चाह.. जिसे नृत्य कहते हैं वो फूट-फूट कर बाहर आने लगी.वो चाहती थी कि वो भी टीवी पर आएं,टीवी सीरियल में काम करें..
पर हुआ क्या.. ?

यही कि आज टीवी नही.. यूं भी वो अपना चेहरा किसी को दिखाती हैं तो वो देखने वालों के हाव-भाव नही देख पाती,देखने वालें देखते भी हैं तो अपनी आँखे चुराने लगते हैं.यहां तक कि अनु खुद को भी नही देख सकती.वो बस अपने हाथों की छुअन से महसूस कर सकती हैं अपने चेहरे और आँखो के पास दिए गए घांव को.. उन पर लग रहें मरहम को..क्योंकि,टीवी पर आने और अपनी कला को प्रदर्शित करने की चाह रखने वाली अनु अपनी दोनों आँखे और अपनी खूबसूरती मेहनत के दम पर पा रही दौलत के कारण गवां बैठी.

जी..

उनका नृत्य के प्रति बेजोड़ लगाव उन्हें एक अख़बार के जरिए जंगपुरा के होटल राजदूत ले गया.जहां उनको डांस करने के लिए चुना गया था.. धीरे-धीरे वहां उनके चाहने वालें यूं बढ़ते गए कि बाकी लड़कियों को उनसे ज़लन होने लगी.अनु महिने में लाखों कमाने लगी थी.और दस साल तक होटल में काम करने के चलते उन्हें कई दफ़ा वर्ष की सबसे पसंदीदा नृत्यकार का भी खिताब मिला था.. जिसके चलते उन्ही की दोस्त मीरा उनसें भीतर ही भीतर दुश्मनी रखने लगी और होटल छोड के जाने के लिए धमकाने लगी.

अनु हमें यह सब बतातें-बतातें कहती हैं कि -- "मैंने ज़रूरत पड़ने पर उस समय 'मीरा' की आर्थिक रूप से सहायता की थी जिस समय कोई भी उसे मदद देने को तैयार नही था लेकिन मुझे कतई उम्मीद नही थी कि यही मीरा एक दिन मुझे कही का नही छोड़ेगी.| बात दरअसल 19 दिसंबर 2004 की हैं.. नए साल से कुछ समय पहले जब होटल में अच्छा-ख़ास काम होता था..हर बार की तरह इस बार भी मैं ही सबसे पसंदीदा नृत्यकार कहलाती.उसनें 'घड़ी' गली नंबर 12 में ही अचानक से काली शौल ओढ़े अपने भाई 'राजू' उर्फ आयूब खान के साथ मिल कर मेरे मुंह पर तेज़ाब फेंक दिया" ..

ऐसा कहते ही वो अपना चश्मा निकालती हैं.. और आठ सर्जरी जिस पर 'पंद्रह लाख' रूपय तकरीबन वो खर्च कर चुकी हैं लगाने के बावजूद भी आँखो का नामों निशान दूर-दूर तक नही दिखता... और रो पड़ती हैं ... ऐसा लगता हैं कि कुछ पानी-पानी सा चेहरे के उस हिस्से से टपकने को हैं.. जहां कभी यही आँखे बिना कुछ कहें बात किया करती थी लेकिन टपकता नही.तेज़ाब का असर आज तक इतना गहरा हैं कि अपनी मर्जी से उन्हें खुल कर रोने तक नही देता.वो अपने पालतु कुत्ते जिसका नाम 'फ्रुटी' हैं उसकों गले लगाते हुये कहती हैं-इंसानों से बेहतर यही हैं मेरे लिए.. दुख-सुख में हमेशा मेरे साथ रहता हैं.. ये मेरा बच्चा हैं.. |

अचानक से एक आँटो की आवाज़ आने पर अनु 'परवेज़' भाई का नाम लेती हैं.. जिनके बारें में पूछने पर बताती हैं कि घड़ी में रहने के दौरान उन्हीं का फोन नंबर था मेरे पास..कहीं आने -जाने के लिए होटल की कार बुक हो जाती थी फिर भी मैं परवेज़ को ही फ़ोन करती थी..उस दिन भी वही थे..जब मुझ पर तेज़ाब फेंकी गयी..सर्दी का मौसम होने के कारण चेहरे को बचाएं रखने के लिए मैंने अपना पूरा मुंह ढक रखा था..बस आँखे ही आज़ाद थी.और उस जलते पानी ने उसी को खत्म कर दिया.आस-पास की दुकान वालें पानी-दूध सब मुझ पर डालने लगें.मेरे कपड़े पूरी तरह गलने लगें तब परवेज़ भाई ने ही सब को हटा कर मुझे अपनी कमीज़ पहनाई और पास के अस्पताल ले गए.वहां जाने के बाद दर-दर भटकना और कोर्ट में मीरा और राजू के खिलाफ़ मुकदमा लड़ने के साथ ही मैंने सारे पैसे, जो अपने और अपने भाई के आने वालें कल के लिए रखें थे सब खर्च कर दिए.जो मुझे मदद कर सकते थे ... एक वक़्त के बाद उन्होंने भी हाथ पीछे खींच लिया.. कई ने 'चेहरा' पहचानने से ही मना कर दिया.मुझे '1जनवरी 2005' को ही एक टीवी सीरियल 'इंस्टेंट खीचड़ी' में भी काम शुरू करना था......... वहां से भी ......खैर.... |

और चारों ओर एक अजीब सा सन्नाटा पूरे कमरें में पसर जाता हैं.. संतरी रंग की दीवारों पर हाथ फेर-फेर कर अनु खड़ी होती हैं और अपनी अलमारी से कुछ कागज़ात निकाल कर लाती हैं.. और बताती हैं कि दिल्ली की महिला एवं बाल विकास मंत्री ने आर्थिक सहायता देने का आशवासन दिया था.लेकिन,अभी तक कुछ भी नही मिला.'सोनिया' जी से मिलने गयी.. चार पांच घंटे पानी पिला-पिला कर उनके पीए ने यह कहकर भेज दिया की मैडम नही मिल सकती.अब बताइए मैं कहां जाऊं..? मेरा भाई पढ़ाई छोड़ कर 'चार हज़ार' की नौकरी कर रहा हैं जिसमें पंद्रह दिन मेरे अदालती मामलें और ईलाज की भेंट चढ़ जाता हैं.जहां काम करता हैं वहां उसे सुननी पड़ती हैं सो अलग.
2011 में हमें जीत मिली थी लेकिन उन दोनों को जिन्होंने मेरी ज़िंदगी तबाह कर दी बस पांच साल की जेल हुई जिसके बाद अगले ही साल वो दोनों बेल पर रिहा हो गए.यह बात सुनते ही मेरे ज़हन ने मुझे कई सवालों से जकड़ लिया -

(पांच सेकिंड भी नही लगे होंगे ....तेज़ाब बोतल से मुंह तक पहुंचने में.. पांच से ज्यादा सर्जरी हो गयी.. और भी होंगी.. सज़ा मिली भी तो बस.. पांच साल की.. और उसके बाद पीड़िता अपनी पहचान छुपा कर रहती हैं.. किसी को बताती नही.. कि मैं कौन हूं.. कौन से सीरियल में काम कर सकती थी.. क्योंकि,हमारा समाज 'बार' खुद सज़ाता हैं.. उस बार में नाचने वाली को बाजारू समझता हैं.. और उसकी कला.. उसका क्या.. ? यदि उसका कोई महत्व हैं तो.. क्यों नही अनु के वो कदरदान जो एक समय उस पर अपनी शोहरत की नुमाईश जमाते नही थकते थे..वापस आ जाते उसकी मदद करने के लिए..एक कलाकार की मदद करने के लिए.. जिसने समाज से लड़ते-लड़ते आखिरी मौके तक अपनी कला को ही अपनी साँसो की डोर से बांधे रखा.क्यों राजदूत होटल का नाम अब अनु को लेना इसलिए डर का अहसास करवा जाता हैं क्यूंकि आरोपी बेल पर बाहर घूम रहें हैं.. पीड़िता आज भी डर में जी रही हैं और उसको पीड़ित बनाने वालें निडर)

आगे अनु कहती हैं-...अब हम हाई कोर्ट में लड़ेंगे उसके खिलाफ़........
मुझे एक मां जैसी वकील भी मिली हैं जिनका नाम कमलेश जैन हैं. वो न होती तो मैं कहा लड़ सकती थी.. मैं जीना नही चाहती.. अगले ही महिने मेरी दोस्त वापस आ रही हैं मैं जिसके मकान में रहती हूं.. मैं कहां जाऊंगी.. मैं भीख नही मांग सकती.. मेरा भाई आप कैमरा वालों से चिढ़ता हैं.. कहता हैं आप लोग हमारे लिए कुछ नही कर सकते.. बस हमारा इस्तेमाल करते हो........लेकिन आप ऐसा नही करेंगे न .. नही करेंगे न...... |


साभार -अंकित मुटरिजा (फेसबुक वाल से )
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