आस्थाएं भी ख़ाक हो गई, मानवता भी राख हो गई।

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भारत में त्योहारों का मान शायद अब पीढ़ी बदलने से कम हो गया हो पर हालात इतने बिगड़ जायेंगे ये नहीं सोचा था। एक ओर नवरात्रि की पावन बेला पर जब पूरा देश कन्याओं के चरण वंदन में लगा था वही दिल्ली की गाँधी नगर की घटना ने इस पर्व की आस्था को तार तार कर दिया। देश भर में चल रहे कन्या पूजन के वक्त एक कन्या की आबरू को इस कदर लूटा गया कि दानव प्रकृति की भी सारी सीमाएँ लाँघ दी गई। एक बार फिर मीडिया कवर, हर चैनल पर एक ही खबर , कैंडिल मार्च, सरकार पर पथराव, नेताओं का घेराव और सरकार का गूंगे बहरे बने रहना, जनता का थक जाना, और बस किस्सा खत्म। शायद ऐसा ही हुआ था 16 दिसंबर 2012 की घटना के बाद। अगर कदम तब उठा होता तो शायद ये अब फिर से न होता। तब तो सरकार को मजा आ रहा था सड़क पर भीड़ देखकर, और आंसू गैस के गोले छोड़कर। और आज इस घटना के बात एक बिल पास तो हुआ पर इस बात पर नहीं कि अपराधियों के लिए सख्त दंड क्या है बल्कि बिल ये पारित हुआ कि अगर बलात्कार हो रहा हो तो लड़की को क्या अधिकार है करने का। जरा बताइये इन्हें अगर लड़की बलात्कार के समय अपना बचाव करने में सक्षम होती तो जनता आज सड़क पर या इनके सदनों का घेराव न करती। और वो भी ऐसी बच्ची जिसकी उम्र महज़ 5 साल की हो। हम लोग क्या है सरकार लोलीपॉप देती रहेगी और हम खुश होते रहेंगे फिर अगली बार सड़क का घेराव करते रहेंगे। आखिर दम न हममे कम है न सरकार में। पर याद रखियेगा अगला सिकंजा आपकी बहन या बेटी है।
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