हिंदी की पुकार

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जन जन से मिल कर 

शहर से निकल कर 

आती है सहमी सी आवाज 

की तुम मुझे बचालो! 

मुझे बचालो ! 

मुझे बचालो !

हर एक पहाड़ से टकराकर 


हर एक नदी से नाह कर 

धरती को चीर कर 

हवा सी घसीट कर 

आती है सहमी सी आवाज 

की तुम मुझे बचालो! 

मुझे बचालो ! 

मुझे बचालो !

माँ की ममता से 



किसान की क्षमता से 

व्यवसायी के व्यवसाय से 

युवा के उत्साह से 

थक हर कर 

आती है सहमी सी आवाज 

की तुम मुझे बचालो! 

मुझे बचालो ! 

मुझे बचालो !

सूर्य की किरण से 

धरती के राज-कण से 

नेताओं के आवाहन से 

इन्सान के संज्ञान से 

आती है सहमी सी आवाज 


की तुम मुझे बचालो! 

मुझे बचालो ! 

मुझे बचालो !

विज्ञानं के चमत्कार से 

ज्योतिष के उपकार से 

दानी के दान से 

विद्वान के ज्ञान से 

थक हर कर 

आती है सहमी सी आवाज 

की तुम मुझे बचालो! 

मुझे बचालो ! 

मुझे बचालो !........

राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी

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