भारत, एक ऐसा देश जिसने सदियों की गुलामी देखी है। इतिहास गवाह है कि इस गुलामी के कसूरवार कोई और नहीं हमारी खुद की असंतोषी प्रकृति थी। सत्ता के लालच और लोभीपन का विदेशी प्रवृतियों ने खूब लाभ उठाया। हम जात पात और छुआ छूत के नाम पर आपस में लड़ते रहे। दामाद और पुत्र ने सत्ता के लोभ में कभी पिता को मरवा दिया तो कभी पिता ने पुत्र और दामाद को। अंग्रेजों ने भारतीयों की इस लोभी प्रवृति को खूब भुनाया और हम भारतवासी अपने ही देश को गुलामी के गहरे गर्त में धकेलते रहे। ये बुराइयाँ हमें तब नजर आई जब हम अपना देश पूरी तरह खो चुके थे। आज भी हालात वही है। एक ओर देश में सत्ता को लेकर गहरा घमासान छिड़ा हुआ है और दूसरी ओर हम वापस लड़ते भिड़ते ही नजर आ रहे है कभी जात-पात के नाम पर तो कभी आरक्षण के नाम पर कभी अपने हक़ के लिए तो कभी अपनी अस्मत के लिए। इन जायज़ मुद्दों के लिए हमारी असंतोषी प्रकृति अक्सर सड़क और नेताओं के घर का घेराव करती नज़र आ ही जाती है। जिसका कारण है हमारी सरकार की छलनी व्यवस्था जहाँ न जनता का हित है और न कोई क़ानून और इसी बीच चीन और पाकिस्तान जैसे देश लगातार देश की सीमाओं पर हमला कर रहे हैं। सत्ता के लोभियों का पूरा ध्यान कुर्सी पर टिका है। हमारी सरकार पडोसी देशों की क्रियाओं पर तूल नहीं देना चाहती। देश को पूरी तरह से लूट लेने वाली ये सरकार, जनता का सुख चैन हराम कर देनी वाली ये सरकार अब देश को वापस दासता की जंजीरों में जकडवाना चाहती है। पर मुझे विश्वास है कि हमें अपनी बुराइयां नज़र आएँगी पर तब तक कहीं देर न हो जाए
By- Swati Gupta
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