माँ

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मुझे उंगली पकड़कर माँ ने चलना सिखाया है।
मैंने आज भी उसे मेरा हाथ थामे पाया है।।

चुभती हुई सी धूप में शीतल छांव जैसी है वो।
राहें कितनी भी मुश्किल हो पर राह जैसी है वो।।

जब कोई न हो साथ तब वो ही साथ देती है।
हम कितने भी अकेले हों, वो हाथ थाम लेती है।।

मै डूबूँ जब भंवर में, वो ही किनारा बनती है।
ठोकरे खाते हो हम, तो वो सहारा बनती है।।

उसके आँचल की छांव में, बड़ी ही राहत है।
उसकी ममता में एक, अजीब सी गर्माहट है।।

मैं जब सहमी सी रहती हूँ,
डरकर घर से निकलती हूँ,

वो मेरे लौटने तक दूर राहों को तकती रहती है।
उसकी माथे की लकीरें कुछ उलझती रहती हैं।।

देखकर मुझे वो राहत की सांस लेती है।
अपनी बढती उन धडकनों को, फिर थाम लेती है।।

कैसे करूँ बखान ये अलफ़ाज़ कम हैं।
उस विधाता की कलम में भी स्याह कम है।।

उसकी ममता से नहीं लगता कि वो इंसान जैसी है।
मेरे सामने वो जीती जागती भगवान् जैसी है।।

Wriiten By- Swati Gupta
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