लोकसभा चुनावो की चिंता क्या कम थी जो सुप्रीम कोर्ट ने एक और तनाव बढ़ा दिया, कुछ ऐसा ही चल रहा है आज कल हमारे राजनीतिक दलों के दिमाग में, सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के अनुसार सजा पाए हुए विधायक और सांसदों की सदस्यता तो रद्द होगी ही साथ ही साथ वो ना हीं चुनाव लड़ सकेंगे और ना ही वोट दाल सकेंगे।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने राजनीतिक दलों को मुश्किल में डाल दिया है। दल फैसले का स्वागत करने को मजबूर हैं, लेकिन उनकी हिचक भी साफ दिख रही है। राजनीतिक पार्टियां कोर्ट के फैसले पर कोई विपरीत टिप्पणी नहीं करना चाहतीं, लेकिन फैसले के असर से बचने के लिए संसद का सहारा लिया जा सकता है।
देश की सबसे बड़ी वामपंथी पार्टी सीपीएम ने इसका विरोध करते हुए कहा कि इससे नागरिकों के लोकतांत्रिक अधिकार का हनन होगा। सीपीएम की धुर विरोधी तृणमूल के सौगत राय ने भी इसे गलत बताया है। जबकि बीजू जनता दल ने शंका जताई है कि इसका गलत इस्तेमाल हो सकता है। वही समाजवादी पार्टी तो इतनी ज्यादा तनाव में है कि उनके महासचिव रामगोपाल यादव ने यह तक कह दिया की सुप्रीम कोर्ट संसद का तीसरा सदन नहीं बन सकता है, संसद का फैसला ही सर्वोच्च है, और सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला कतई स्वागत करने योग्य नहीं है, और उनकी पार्टी
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को संसद में रद्द कराने का पूरा प्रयास करेगी।
तो क्या एक एतिहसिक फैसला लागू होने से पहले ही रद्द कर दिया जायेगा, कुछ कहा नहीं जा सकता हमारी संसद जहाँ पर बड़े से बड़े बिल पर नेताओ की एक राय नहीं बन पाती ऐसे मुद्दों पर अक्सर वो एक साथ आ जाते है।