बुरका

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जब खुदा मेरी देह बना रहा था
उसी समय उसने
तुम्हारी आँखों पर
बनाया था हया का पर्दा

तुमनें मन की कालिमा से
एक लिबास बनाया
और
हमने पहन लिया  
तुम्हारी कालिख छिपाने के लिए

तुम हमेशा मुझे पर्दे के मायने समझाते हो
और मैं हाँ-हाँ में सिर हिलाती हूँ
मन करता है
तुम्हारी बातों की मुखालफत करूँ

मैं जानती हूँ कि
बेहयाई मेरे बदन में नहीं है
जो ढँक लूँ किसी लिबास से
बल्कि
वो तैर रही है तुम्हारी आँखों में
बागी, बेख़ौफ़ लड़ती हुई हर पल 
हया के पर्दे से

कवी - सुशील कुमार 
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