उपरवालों ने किस्मत दी
मुझे माँ और बहन बनने की !
और नीचेवालों ने ख़ुशी दी
भाभी, दोस्त और
हमसफ़र बनने की !!
तो फिर ये क्या शुरू कर दी
मुझे दर्द और पीड़ा देने की !
मुझे खिलौना बना कर
समाज से अलग करने की !!
मज़े लोग मिलके लेते है !
बाँटके इसे ख़ुश होते है !
तो फिर ये क्या हो रहा है !
जो मुझे रूला रहा है !
तोड़ रहा है !!
फिर कैसे
लोगों को मज़ा आ रहा है !!
मैं तो हिस्सा हूँ
सभी घरों का !
कोई नई चीज नही हूँ !
तो फ़िर क्यों लोग
इतना पगला रहे है !
जिसके कारण
सारे रिश्ते भूला रहे है !!
क्या मुझे हक़ है ज़ीने का !
हँसने का !
जो दिल करे करने का !!
या फ़िर ख़त्म कर लू
ख़ुद को !
इससे पहले कोई
फ़िर करे कोशिश
मुझसे खेलने का …!!!
कवी - जय बरणवाल