भारत को जिन अन्तराष्ट्रीय अपराधियों की तलाश
है उनमे से शीर्ष पर “दाउद” का भी नाम है पर कुछ सालों से हिंदी सिनेमा इस अपराधी
की एक नायकत्व छवि दर्शको के सामने प्रस्तुत कर रहा है | शुरुवात हुई साल 2004 में आई फिल्म “ब्लैक
फ्राइडे” के साथ, मगर इस फिल्म में दाउद की छवि को नायक के रूप में प्रस्तुत नहीं
किया गया, लेकिन वहाँ से कई निर्देशकों और लेखकों को एक सिनेमाई मसाला मिल गया
जिसे बाद में वो अपने अनुरूप प्रस्तुत करते रहे | साल 2010 में आई फिल्म “वन्स अपान अ
टाइम इन मुंबई” में दाउद के नायकत्व किरदार का जन्म हुआ, और जिसका अगला भाग “वन्स
अपान अ टाइम इन मुंबई दोबारा” भी दर्शकों के सामने आने वाला है | इसी साल 2013 जुलाई महीने में फिल्म “डी-डे”
में एक बार फिर दाउद के किरदार को पुरे शान और रुतबे के साथ पर्दे पर लाया गया |
दाउद हिन्दुस्तान के शीर्ष अन्तराष्ट्रीय
अपराधियों में से एक है, ये वाजिब है कि उसके द्वारा किये गए कुकृत्यों को दुनिया
के सामने सिनेमा के माध्यम से प्रस्तुत किया जाए पर यह बिल्कुल भी वाजिब नहीं है
कि एक अपराधी को दर्शकों के सामने नायक के रूप में प्रस्तुत किया जाए | हमेशा ही
युवा वर्ग सिनेमा से ज्यादा नजदीक रहता है और वो आकर्षक रूप से प्रस्तुत किये गए
दाउद के किरदार से प्रभावित हो सकते हैं और भटक सकते हैं |
हिन्दी सिनेमा से जुड़े हर शख्स को इस बात का
पूरा ध्यान रखना होगा कि वो कहीं मनोरंजन की आड़ में समाज को ऐसा कुछ न डे बैठे
जिसका दुष्प्रभाव समाज पर पड़े और हिंदी सिनेमा अपने मूल सिधान्तो मनोरंजन और समाज
को जागृत करने से विमुख हो जाए |