“मिड डे मील” उत्तमता से मीलों दूर

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"बिहार" के जहरीले "मिड डे मील" प्रकरण में 23 मासूम बच्चों की मौत ने सभी को झकझोर दिया और इसके साथ ही फिर से मिड डे मील सवालों के घेरे में आ चूका | वैसे तो मिड डे मील में  खामियों की खबर समय-समय पर सामने आती रही है पर बिहार में 23 बच्चों की मौत के बाद यह योजना कई तरह से निन्दात्मक हो गयी है |
 मिड डे मील योजना इस दृष्टिकोण के साथ आरम्भ हुई थी की गरीब बच्चों को भोजन के माध्यम से स्कूलों तक लाया जाये, जो एक हद तक कामयाब भी हुई पर इस योजना के समय-समय पर बच्चों के लिए प्राणघातक होने पर ये सवालों के घेरे में भी आती रही | साथ ही इस योजना में समय के साथ परिवर्तन की भी आवश्यकता थी जो अब तक नदारद है, बच्चे अगर सिर्फ खाना खाने की कामना लेकर स्कूल आयेंगे तो शिक्षा कौन ग्रहण करेगा, ब्लैक बोर्ड पर अगर विषयक ज्ञान के साथ दिन के खाने का मेनू लिखा होगा तो बच्चों का ध्यान भटकना स्वाभाविक है |
  बिहार में जहरीले मिड डे मील प्ररण के बाद कुछ बुद्धिजीवियों ने पैक्ड खाने की पैरवी शुरू कर दी है, पर पैक्ड खाना स्कूलों में सही समय पर बट जाएगा इस बात को कौन सुनिश्चित करेगा, क्यूंकि पैक्ड खाने की एक सीमित अवधि होती है जिसके रहते उसे खाना आवश्यक होता है | जब लापरवाही के चलते बच्चों की थाली में जहरीला भोजन पहुँच सकता है तो पैक्ड खाना बिना लापरवाही के उचित समय पर बच्चों तक पहुँच जाएगा इसकी क्या गारेन्टी है, साथ ही पैक्ड खाने में पोषकता की कमी तो जगजाहिर है ही |

 इन सब बातों से ये साफ़ है कि मिड डे मील योजना में कई बदलावों की आवश्यकता है और साथ ही जरुरत है इस योजना पर सरकार की गहन नज़र रहे ताकि यह योजना बिना किसी लापरवाही और सम्पूर्णता से चले | 
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