आसमानों को रंगने का हक

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बारिश होने लगी फिर
उठने लगी
ज़मीन से सौंधी-सौंधी महक
जिसमें चीखने लगा खून
फिर मेरे बाप-दादाओं का

जिस जमीन को हम जोतते चले आये
हरी-भरी बनाते चले आये
सींचते चले आये खून से पीढ़ी-दर-पीढ़ी

जिस जमीन में मिल कर
हमारे खून की तीक्ष्ण गंध सौंधी हो गयी है
उस जमीन के लिए खून लेने का हक हमें चाहिए

शोषकों के संगीनों को
उनकी ही तरफ मोड़ने का हक भी हमें चाहिए

मिट्टी में सनी लालिमा से  
आसमानों को रंगने का हक भी हमें चाहिए

कवी - सुशील कुमार 
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