तेरी खामोश निगाहें कुछ कहना चाहती हें,
शायद ! मुझ को,अपनी आगोश में लेना चाहती हें|
बीते लम्हों की याद को, फिर से जगाना चाहती हें ,
एक चिंगारी को फिर से ,भड़काना चाहती हें|
भूल चुका था जिस हंसी को,आज वो तेरे शुर्ख लबों पे हें ,
उन लबों को आज फिर से ,चूमना चाहता हूँ में|
एक प्यारी सी कली जो , गुलिस्ताँ में खिल रही हें,
उस कली को तोड़ कर ,जुल्फों में लगाना चाहता हूँ |
एक तेरी तश्वीर को , अपने सीने से लगा कर ,
फिर से मजनूं को इस,दुनिया में बुलाना चाहता हूँ.|
भूल चुका था जिनकी यादें ,आज उन की यादों को,
अपने दिल में बसा कर ,फिर से याद करना चाहता हूँ में |
कवि- संजय कुमार गिरि