काहे की ये आजादी जब पैंरो मेँ पड़ी जंजीरेँ ||

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    भारत माँ की शान मिट गयी, मिट गयी अमर कहानी लुटी खड़ी है भारत माता आँख से बहता पानी, वेद गीता का ग्यान मिट गया रामायण है रूठी, हिन्दुस्तान मेँ हिन्दु बोले हिन्दी टूटी-फूटी,
    कोई धनुर्धर नहीँ यहाँ अब कोई नहीँ चक्रधारी लूटपाट की महामारी है, हैँ सब भ्रष्टाचारी, रिश्ते हैँ सब मरणासन से भाई-भाई को मारे राम लखन अब कोई नहीँ है दुःशाशन भए सारे, मेरे स्वपन के भारत का ये कैसा निर्माण हुआ, भगत सिँह की कुर्बानी का ना सपना साकार हुआ,
    संस्कार कब्रोँ मेँ गड़ गए, दिलोँ मेँ नफरत बोले, मैँ हिन्दु तू मुस्लिम है दिल-दिल मेँ नफरत घोले, यहाँ का राजा कठपुतली सा देखो नाच दिखाए, और सब संसद मेँ खुशी के मारे ताली ठोक के आए,
    जी चाहे भारत मेँ अब फिर त्रेता युग आ जाए, राजा हो फिर कोई पुरुषोत्तम जन-जन मेँ राम समा जाए
    काहे की ये आजादी जब पैंरो मेँ पड़ी जंजीरेँ आज के दिन ही क्योँ फोड़े हम आजादी के मंजीरे नहीँ पलटी जो कब्र यहाँ फिर, उदय न फिर संस्कार होगा देख लेना सिर्फ शैया होँगी, लहू-लहू संसार होगा ||

    कवयित्री - स्वाती गुप्ता
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