वक्त कभी ठहरता नहीं वो चलता है नदी की तरह
आज वक़्त अपना एक पड़ाव पुरा कर चुका है ...
पुरा कर चुका है तुम्हारा बाबुल के आँगन तक का सफर
वक्त ने इस सफर में तुम्हे पिता की ऊँगलिया पकड़े देखा है
जब......
तुम पापा की 'शेहजादी' थी
ड़र से माँ के आँचल में छुपते देखा है
जब.....
तुम माँ की 'गुड़िया' थी
आज तुम वो शेहजादी नही हो
ना ही वो गुड़िया हो
शायद.....
बच्चे सच में बहोत जल्दी बड़े हो जाते हैं .. ..
उनकी आँखो में इक सैलाब है जो तुम्हें देख फुट रहा है
और
तुम्हें ही देख थम भी रहा है
उन आँसूऔ के आगे
तुम....
अब भी वही शेहजादी हो
तुम.....
अब भी वही गुड़िया हो ......
वक्त अब भी बित रहा है जैसा हर बार बितता है
कुछ लम्हों बाद तुम अपने को बाबुल को छोड़ जाओगी
तब.....
तुम्हारी आँखो में वो आँसू होंगे जो थे हमेशा पर बहे नही थे
अब इक नया परिवार है तुम्हारे पास
जिसकी जिम्मेदारी मिली है तुम्हे कुछ खास.
अब तुम्हे इक गुलदस्ता बनाना है जिसके फूल तुम्हारे सामने है
इक माला बनानी है जिसके मोती तुम्हारे सामने है ...
अब सफर बहोत लम्बा है....
आयेंगे तुफान कई इस सफर में
वो आते हे
अक्सर आते रहेंगे...
घबराना नहीं ना कभी हार मानना
अपने बनाएँ गुलदस्ता की महक बचाएँ रखना
अपनी बनाई माला के मोतियों को अपने अड़िग विश्वास से पीरो के रखना ....
कवि- संदीप रावत