पिछले दो-तीन दशकों में भारत एक शक्तिशाली देश के रूप में विश्व के समक्ष उभरा है और अपनी पहचान एक ऐसे राष्ट्र के रूप में कायम की है जो किसी भी देश से तकनीक और हथियारों के मामले में कमजोर नहीं है, साल-दर-साल भारत ने नयी तकनीक और नए हथियारों के जरिये विश्व को अपनी ताकत का एहसास कराया और भारत आज अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक मजबूत छवि वाला देश नजर आता है । ये भारत का एक ऐसा चेहरा है जिसे देखकर हम गौरवान्वित महसूस कर सकते हैं, पर दूसरी तरफ भारत आज भी एक ऐसी समस्या से जूझ रहा है जिसके चलते कोई भी देश महान की श्रेणी में नहीं आ सकता, भारत आज भी शिक्षा के दृष्टिकोण से काफी पिछड़ा हुआ देश है, जहां देश को नयी तकनीक और प्रगति देने वालो की कोई कमी नहीं है वही ऐसे लोगो की भी भरमार है जो शिक्षा जैसी बुनियादी आवश्यकताओं से कोसों दूर हैं ।
पिछले एक दशक में भारत ने अपनी प्राथमिक शिक्षा को पुख्ता करने के लिए काफी कुछ किया है। बच्चों का स्कूल तक पहुंचना आसान हुआ है और स्कूल में दाखिलों और हाजिरी में भी सुधार हुआ है, लेकिन इनके आंकड़ों के पीछे का एक सच यह भी है कि हमारा सारा ध्यान दाखिले पर रहा है लेकिन इसी के साथ शिक्षा की गुणवत्ता में काफी तेजी से गिरावट आई है, भारत में विकास को गाँवों से जोड़कर देखा जाता है पर शिक्षा के मामले में गाँवों की दशा निंदनीय है | भारत के ग्रामीण स्कूलों में हुए कुछ सर्वेक्षणों से पता चलता है कि स्कूलों में पढ़ाई का स्तर बहुत खराब है, इसमें और भी गिरावट आती जा रही है। पांचवीं कक्षा के 53.2 फीसद बच्चे दूसरी कक्षा का पाठ भी नहीं पढ़ सकते हैं, दो साल पहले इन बच्चों का प्रतिशत 46.3 था, यानी हालात सुधरने के बजाय और बिगड़ रहे हैं। इसी तरह दो साल पहले पांचवीं कक्षा के 29.1 फीसद बच्चे संख्याएं घटाने का वह साधारण सवाल हल नहीं कर पा रहे थे जो उन्हें दूसरी कक्षा में कर लेना चाहिए। अब यह प्रतिशत काफी बढ़ कर 46.5 हो गया है। दुखद यह है कि करीब बीस फीसद बच्चे तो दहाई की संख्या को भी नहीं पहचान पा रहे हैं।
दूसरी तरफ सरकार को जहाँ देशभर में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए हाल ही में आए आम बजट में शिक्षा बजट को बढ़ाना था, उसके विपरीत बजट में कटौती कर इसे महज 65,867 करोड़ ही आवंटित किए गये। ऐसी स्थिति में देश की साक्षरता दर बढ़ाने के लिए चलाये जाने वाले कार्यक्रमों को भी उचित धन नहीं मिल पाया क्योंकि सर्व शिक्षा अभियान जैसे महत्वपूर्ण कार्यक्रम को महज 27 करोड़ का ही आवंटन हुआ जबकि इसे अधिक धन की दरकरार थी।अच्छी शिक्षा देश की प्रगति, मजबूती, विकास और लोकतंत्र की सफलता के लिए एक अनिवार्य शर्त है। बम,मिसाइलों, परमाणु बिजलीघरों और मंगल ग्रह पर यान भेजने से ज्यादा जरूरी है बच्चों की सामान्य शिक्षा, वरना आने वाले समय में समाज ऐसे दो वर्गों में बटा हुआ पाया जाएगा जिसमे एक तरफ होगा एक ऐसा समाज जो सक्षमता का पर्यायवाची हो सकता है, पर दूसरी तरफ एक ऐसा आवश्यक समाज होगा जिसकी हमें बेहद आवश्यकता तो होगी मगर वो इस लायक नहीं होगा की राष्ट्र की प्रगति में भागीदारी कर सके ।
लेखक- वैभव सिन्हा