औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाज़ार दिया
जब जी चाहा मसला कुचला जब जी चाहा दुत्कार दिया
तुलती है कभी दिनारों में, बिकती है कभी बाजारों में
नंगी नचवाई जाती है अय्याशों के दरबारों में
ये वो बेईज्ज़त चीज़ है जो बंट जाती है इज्ज़तदारों में
औरत ने जनम दिया मर्दों को .....
मर्दों ने बनाई जो रस्में उनको हक़ का फ़रमान कहा
औरत के जिन्दा जलने को कुर्बानी और बलिदान कहा
अस्मत के बदले रोटी दी और उसको भी एहसान कहा
औरत ने जनम दिया मर्दों को .....
मर्दों के लिए हर ज़ुल्म रवां औरत के लिए रोना भी ख़ता
मर्दों के लिए लाखों सेज़ें औरत के लिए बस एक चिता
मर्दों के लिए हर ऐश का हक़ औरत के लिए जीना भी सज़ा
औरत ने जनम दिया मर्दों को .....
औरत संसार की क़िस्मत है फ़िर भी तक़दीर की हेठी है
अवतार पयम्बर जनती है फ़िर भी शैतान की बेटी है
ये वह बदक़िस्मत मां है जो बेटों की सेज़ पे लेटी है
औरत ने जनम दिया मर्दों को .....
लेखक- ध्रुव गुप्ता