"माइ नेम इस आसालक्ष्मण"

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माता जी की उम्र और वजन कुछ ज्यादा ही था इसलिए वो रिक्शा से उतरना नहीं चाहती थीं, पर राह चलते प्रकाण्ड पण्डित की बातों के लुभावनेपन से वो खुद को बचा भी न सकीं जो उसे दरकिनार कर पातीं, और पण्डित जी को भरी हुई आवाज़ में उत्तर देती रहीं जी पण्डित जी, जी पण्डित जी | माता जी के मन को भाप कर पण्डित जी ने आखिर वो कह ही डाला जिसका माता जी को इंतज़ार था, देखिये माता जी आपने अपने जीवन में बड़ी मेहनत की, बहुत सारे परोपकार किये, बहुत दान-दक्षिणा की और बड़ी पूजा-पाठ भी की पर आपको जीवन में मन मुताबिक़ चीजें हासिल न हुई | माता जी का गला और भर आया और उन्हें पूर्णतया विशवास हो गया की उन्हें इस प्रकाण्ड पण्डित से अपने जीवन के कष्टों का निवारण अवश्य ही मिलेगा और वो बोली हां पण्डित जी वो तो है पर ऐसा क्यों पण्डित जी मैंने तो कभी किसी का बुरा न किया फिर मेरे ही साथ ऐसा क्यों, मै क्या करूं ?

तभी रिक्शा वाले ने लंबी होती बात-चीत पर ऐतराज़ जताया और बोला माता जी “हमको देर हो रहा है” और ये शायद उसकी सबसे बड़ी गलती थी क्यूंकि उसे पता नहीं था उसने उस दुकानदार की दुकानदारी में हस्तक्षेप किया है जो उसका भूत, भविष्य और वर्तमान मात्र बातों से ही संकट में डाल सकता था और हुआ भी वही जब पण्डित जी ने बताया बच्चा तू बिहार से यहाँ रोटी कमाने आया है पर यहाँ भी तुझे सफलता नहीं मिल रही रिक्शा वाला भी गिडगिडा कर उपाय पूछने लगा, पर पण्डित को दुर्बल मुर्गे पर समय व्यर्थ करना ठीक न लगा वो वापस मोटी मुर्गी पर झपटा और बोला माता जी आपके मंगल पर राहू सवार है, जो उसे बुध पर जाने से रोक कर सोम की ओर खींच रहा है इसलिए आपके काम नहीं बनते हैं | माता जी- पण्डित जी उपाय |


पण्डित- माता जी देखिये जिंदा मुर्गे की खोपड़ी, विधवा के माथे का सिन्दूर, किसी मासूम नेता के चप्पलों की धूल, नास्तिक के माथे का टीका और टमाटर,प्याज की चटनी के मिश्रण से तैयार हवन सामग्री से हवन कराना पड़ेगा तब जाकर कहीं ग्रहों की चाल-ढाल चरित्रवान होगी, इस सब मे 2100 का खर्चा होगा माता जी | ठीक है पण्डित जी इस पूजा के बाद मै आपसे दोबारा कैसे मिल पाऊँगी | पण्डित जी ने अपनी जेब से एक कार्ड निकला और माता जी को दिया जिस पर उनका पूरा परिचय लिखा हुआ था जिसे पढकर अचानक सब कुछ बदल गया, माता जी ने वो कार्ड फेंक दिया और रिक्शेवाले से बोली चल यहाँ से | असल मे वो पण्डित के नाम से खुद को जोड़ ना सकीं, पण्डित का नाम था “आसालक्ष्मण” | 

                               लेखक- वैभव सिन्हा 
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