हिंदी / उर्दू फिल्मों में ऐसे कम ही अभिनेत हुए हैं, जिनकी रूपहले परदे पर उपस्थिति मात्र एक सुखद और आत्मीय अहसास छोड़ जाती थी। पिछली सदी के छठे से आठवे दशक के नायक और चरित्र अभिनेता "फ़ारूख शेख" ने अपनी फिल्मों - गरम हवा, शतरंज के खिलाडी, गमन, नूरी, उमराव जान, चश्मे बद्दूर, बाज़ार, साथ साथ, कथा, रंग बिरंगी, सलमा, फासले, माया मेमसाहब, बीवी हो तो ऐसी और टेल मी ओ खुदा आदि में अपने सहज और स्वाभाविक अभिनय से दर्शकों के बीच अपनी एक अलग और बेहद प्यारी-सी छवि बनाई थी।
फ़ारुख़ का जन्म मुम्बई के एक वकील मुस्तफ़ा शेख और फ़रिदा शेख के एक मुसलमान परिवार में जो बोडेली कस्बे के निकट नसवाडी ग्राम के निकट बड़ोदी गुजरात के अमरोली में हुआ। उनके परिवार वाले ज़मिंदार थे और उनका पालन पोषण शानदार परिवेश में हुआ। वो अपने घर के पाँच बच्चो में सबसे बड़े थे। वो सेंट मैरी स्कूल, मुंबई में पढ़ने गये और बाद में सेंट जेवियर्स कॉलेज, मुंबई गये। उन्होंने कनून की पढ़ाई सिद्धार्थ कॉलेज ऑफ़ लॉ में पूर्ण की।
फारुख शेख एक बेहतरीन अभिनेता के साथ-साथ एक बेहतरी इंसान भी थे, कल रात दुबई में 65 साल की उम्र में दिल के दौरे से उनका निधन फिल्मों की एक अपूरणीय क्षति है। फ़ारूख शेख को खेराज़-ए-अक़ीदत !
लेखक - ध्रुव गुप्ता
