क्या दिया इस सरकार ने हमे?

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पहले घाव ओर फिर मरहम की बजाय लगाया गया नमक...........

देश को झोक दिया ऐसी भुकमरी की आग मे और कपिल सिब्बल द्वारा कह दिया गया कि ग़रीबो की वजह से महगाई बढ़ी क्योंकि पहले ग़रीब नमक से रोटी खा लेता था अब ग़रीब दो-दो सब्जी से रोटी ख़ाता है।
भारत की दयनीयता दिखाई गई तो कह दिया गया कि शहर मे २२ रुपये कमाने वाला ग़रीब नही ओर गाँव मे ११ रुपये कमाने वाला ग़रीब नही।
दिसंबर 2002 मे जो पेट्रोल 28.91 रुपय था, वही पेट्रोल 2014 तक आते आते 76.06 रुपये हो गया।
जनता ने अगर अपने लिए आवाज़ उठाई तो उस पर लाठियाँ बरसी ओर आँसू गॅस के गोले छोड़े गये।
उद्दंडता की सीमा तो तब पार हो गई जब दिल्ली मे भर पेट खाना 5 रुपये मे मिलने लगा।
तस्वीर केवल इतनी बदली कि जो नारा पहले आधी रोटी खिलाने का था वो अब पूरी रोटी मे बदल गया भर पेट खाना पता नही कब मिलेगा।
सारा देश लहुलुहान करके रख दिया और देश को एक बार फिर सोचने पर मजबूर कर दिया गया कि क्या लोकतंत्र मे हैं हम नागरिक? ये कैसा प्रजा तंत्र कि केवल प्रजा ही मरे।
मुझे कुछ चीज़े राजतंत्र की बड़ी ही अच्छी लगती हैं। जैसे जब पहले दो देशो या क्षेत्रों के मध्य युद्ध होते थे तो राजा को अपना रथ सबसे आगे
लेकर जाना होता था। राजा प्रजा को देखने के लिए पैदल भ्रमण करता था। केवल यही प्रक्रियाएँ आज भी लागू होती तो किसी देश का ये हाल ना होता।
जय हिंद, जय भारत.।

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