ये जिंदगी उसी की है जो किसी का हो गया, जाग दर्दे इश्क़ जाग, दुआ कर गमे दिल खुदा से दुआ कर, इंसान का इंसान से हो भाईचारा यही पैगाम हमारा, आधा है चन्द्रमा रात आधी, देख हमें आवाज़ न देना ओ बेदर्द ज़माने, दिल की दुनिया बसा के सावरिया तुम न जाने कहां खो गए, महफ़िल में जल उठी शमा परवाने के लिए, इना मीना डीका, मेरे पिया गए रंगून किया है वहां से टेलीफून, भोली सूरत दिल के खोटे, आना मेरी जान मेरी जान संडे के संडे, जा री जा री ओ काली बदरिया, कितना हसीं है मौसम कितना हसीं सफ़र है, धीरे से आजा रे अंखियन में निंदिया आजा रे आजा, कोई किसी का दीवाना ना बने, बलमा अनाडी मन भाए, तुम क्या जानो तुम्हारी याद में हम कितना रोए जैसे अमर गीत देने वाले सी रामचंद्र उर्फ़ रामचंद्र नरहर चितलकर पिछली सदी के पांचवे और छठे दशक के बेहद सुरीले संगीत निदेशक थे। उन्हें वह यश नहीं मिला, जिसके वे हक़दार थे। 1942 में फिल्म 'सुखी जीवन' से अपनी संगीत यात्रा शुरू करने वाले इस संगीतकार ने 100 से ज्यादा हिंदी, मराठी, तमिल और तेलगू फिल्मों को अपने संगीत से संवारा था। उनकी प्रमुख हिंदी फ़िल्में थीं - अलबेला, आज़ाद, अनारकली, साक़ी, नास्तिक, पैग़ाम, इंसानियत, देवता, पहली झलक, नदिया के पार, शारदा, बारिश, अमरदीप, आशा, तलाक़, स्त्री, सरगम, सगाई, नवरंग और राजतिलक। पुण्यतिथि पर इस महान संगीतकार को हार्दिक श्रद्धांजलि, उनके एक गीत की पंक्तियों के साथ !
सुर आधा ही श्याम ने साधा
रहा राधा का प्यार भी आधा
नैन आधे मिले, होंठ आधे हिले
रही मन में मिलन की वो बात आधी
आधा है चन्द्रमा, रात आधी
रह न जाए तेरी मेरी बात आधी
मुलाक़ात आधी !
लेखक - ध्रुव गुप्ता
