16 दिसम्बर के ही दिन पिछले वर्ष हमने मानवता पर हैवानियत का ऐसा प्रहार देखा था, जिसने हम सबको झकझोर के रख दिया, वहाँ से एक लड़ाई शुरू हुई जो घर से सड़क तक फिर एक क्रांति में बदल गई जिसमे हर कोई शामिल था वो जो परिवर्तन चाहते थे
और वो भी जो बस टाइम पास के लिए सड़क पर आये आज उस घटना को पूरा एक साल हो गया है क्या बदला?????
शायद इसी सवाल के साथ या अंदर से एक आवज़ आई और मेरे कदम आज फिर जंतर मंतर की ओर बड़ गए पर इस बार नज़ारा काफी अलग था जैसे:-
भारतीय लोकहित मोर्चा, भारतीय महिला फेडरेशन, मंगल विमेंस क्लब, सिटीजन आर्टिस्ट ग्रुप, राष्टीय गोरक्षा परिषद्, प्रगति महिला शक्ति संगठन, फोडशन ऑफ़ राजधानी क्लीनिकल, अनुसूची जाति/जनजाति संगठन, जस्टिस फॉर मुज़फ्फरनगर रायट विक्टिम्स, जनतंत्र मोर्चा, पेंशन परिषद्, भारतीय आदिवासी महार गौड़ घुटिया महापंचायत, मछुवारा समाज ,भारतीय निषाद एकता परिषद् (कोई समूह मेरी नज़र से बच गया हो तो माफ़ी ),बहोत भीड़ थी ये सभी समूह अपने अपने मुद्दो को लेकर यहाँ इक्क्ठा हुए थे सब बड़े बड़े भाषणो से अपनी बात बड़ चढ़ कर रख रहे थे,शायद अब हम लोग अपने हक़ के लिए सड़को पे उतरना सीख़ रहे है |
इस भीड़ में निसंदेह मेरे आखें उन मोमबत्तियों को ढूंढ रही थी जो पिछले साल हम में से कोई लोगो ने मिलकर जलाई थी वो मुझे मिली भी उन मोमबत्तियों में अब भी वही गरमी थी जो पिछले साल थी इन की तपन अब भी वैसी ही थीजो बार बार चीख़ कर मानों कह रही थी की "सुनो हम हर साल यहाँ जलेंगे तब तक जलेंगे जब तुम हमारी आवाज़ सुन नहीं लेते तब तक जलेंगे जब तक हमारी आवाज़ बस एक दिन इस 16 दिसम्बर की मोहताज न हो तब तक जलेंगे जब तक ये आवाज़ जंतर मंतर, इंडिया गेट के आलावा कही और से भी सुनी जा सके "ये मोमबत्तियां जल्द बुझने वाली नहीं है
"दामिनी" रास्ता दिखा चुकी है वक़्त के साथ इनकी तपन बढ़ेगी तब ये ना किसी दिन की मोहताज होंगी ना किसी जगह की क्यों नाहम सब भी एक शुरुआत करे एक मोमबती हमारी भी, एक आवाज़ हमारी भी कब तक लड़कियों का रात में निकलने से पहले सोचना पड़ेगा?? उनकी सुरक्षा चार दीवारी ?? शुरआत खुद से करने की जरुरत है ये समाज़ भी शायद तभी बदलेगा ,बेशक वक़्त लगेगा पर शुरुआत हो ...........
"दामिनी को श्रद्धांजलि"
लेखक- संदीप रावत
i agree with the writer , its upto us whethr we want the change or not ...
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