सोंचा था सपनो का आशियाँ बनायेंगे

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सोंचा था सपनो का आशियाँ बनायेंगे

जहाँ दोस्तों के संग मिलकर अरमानों के दिये जलायेंगे

पर लगता है वो घड़ी आयी है अभी 

जब ना चाहते हुए भी हमे अलग होना पड़ रहा है 

बिन दिखाए ही आँसू के घूट पीना पड़ रहा है 

दुःख की रात के बाद सबके जीवन मे नया सवेरा आएगा 

हर किसी को नया दोस्त मिल जाएगा 

पर हम यूँ ही देखते रह जायेंगे उस राह की विरानियाँ

जहाँ हमने सबके संग सुनी थी कहानियाँ

चाहा की कुछ वक्त बाद सबकी एक झलक तो मिले 

लेकिन झलक क्या राहों मे किसी के कदमों के निशाँ तक न मिले 

इस तरह हम न कर पाए दिल का हाल बयाँ

आज के बाद न जाने हम कहाँ तुम कहाँ 


लेखिका - जागृति पाण्डेय 
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