एक थी गुलाब बाई !

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उत्तर भारत की सर्वाधिक लोकप्रिय नाट्य-विधा नौटंकी के लगभग चार सौ साल पुराने इतिहास से अगर किसी एक शख्सियत का नाम लेने को कहा जाय तो निर्विवाद रूप से वह नाम होगा पद्मश्री स्व. गुलाब बाई का। अपने जीवनकाल में ही किंवदंती बनी इस महान लोक कलाकार का जन्म उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जनपद के बलपुरवा गांव के एक गरीब लोक-गायक परिवार में हुआ था। गुलाब का बचपन गांव की गलियों में पैसों के लिए नाचते-गाते बीता। 1931 में जब गुलाब ने नौटंकी में पहली बार बाल कलाकार के रूप में अभिनय किया तो उन्हें नौटंकी की पहली महिला कलाकार होने का गौरव प्राप्त हुआ था। पुरूषों के गढ़ में किसी स्त्री का यह पहला प्रवेश था। गुलाब जवान हुई और जल्द ही अपनी अभिनय-क्षमता, अपनी अदाओं और विलक्षण लोकगायिकी के बूते नौटंकी की बेताज मलिका बन बैठी। उनकी लोकप्रियता का आलम यह था कि उन्हें देखने-सुनने के लिए लोग खुशी-खुशी दस-दस, बीस-बीस कोस की पैदल यात्राएं करते थे। थियेटर मालिकों के आर्थिक शोषण से तंग आकर 1955 में उन्होंने खुद अपनी कंपनी ' द ग्रेट गुलाब बाई थियेट्रिकल कंपनी ' की स्थापना की। नौटंकी को उत्तर भारत के गांव-गांव तक ले जाने का श्रेय गुलाब की इसी कंपनी को जाता है। ' सुल्ताना डाकू ' उनकी सर्वाधिक लोकप्रिय नौटंकी है जिसके द्वारा उन्होंने सामाजिक सरोकारों के लिए प्रसिद्द एक दुर्दांत डकैत को लोकमानस का नायक बना दिया। गुलाब बाई द्वारा तैयार और अभिनीत कुछ अन्य प्रसिद्द नौटंकियां हैं - लैला मजनू, शीरी फरहाद, हरिश्चन्द्र, भक्त प्रह्लाद, सत्यवान सावित्री, इन्द्रहरण और श्रीमती मंजरी। 

गुलाब बाई अभिनेत्री के अलावा बेहतरीन गायिका भी थीं। उनके कुछ गीत तो आज भी लोकगायकों और ग्रामीण जनता की जुबान पर हैं, जैसे - पान खाए सैया हमार, नदी नारे न जाओ श्याम पैया परूं, मोहे पीहर में मत छेड़, जलेबी बाई,भरतपुर लुट गयो हाय मेरी अम्मा, पटना शहरिया में जाओ रानी, अकेली डर लागे, गोरखपुर की एक बंजारन, हमरा छोटका सा बलमुवा आदि। उनके अधिकतर गीतों का बॉलीवुड के लोगों ने उनके जीवनकाल में ही अपनी फिल्मों में इस्तेमाल तो किया, लेकिन क्रेडिट में उनका नाम तक देना ज़रूरी नहीं समझा। गुलाब बॉलीवुड के इस सलूक से बेहद मर्माहत हुई थी। 1996 में उनकी मृत्यु के बाद उनके कुछ शागिर्द उनकी विरासत संभाल तो रहे हैं, लेकिन उत्तर भारत के मेलों-ठेलों में ' द ग्रेट गुलाब बाई थियेट्रिकल कंपनी ' नाम से कई थियेटर कंपनियां जिस स्तर पर अश्लीलता फैलाने में लगी हैं, उसे देखते हुए नौटंकी जैसी जनप्रिय लोकनाट्य विधा का भविष्य अंधकारमय ही लगता है।

                                                       लेखक - ध्रुव गुप्ता 
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