सरस्वती-पूजा क्या है ?

RAFTAAR LIVE
0
                                                               

प्राचीन काल में आर्य सभ्यता और संस्कृति का केंद्र उत्तर भारत था। आज की विलुप्त सरस्वती उत्तर भारत (वर्तमान जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पाकिस्तान का पूर्वी भाग, राजस्थान और गुजरात) की मुख्य नदी हुआ करती थी। तत्कालीन आर्य-सभ्यता के सारे नगर और व्यावसायिक केंद्र सरस्वती के तट बसे थे। उस युग के तमाम ऋषियों के आश्रम सरस्वती के तट पर स्थित थे। ये आश्रम विद्या, अध्यात्म, संगीत और वैज्ञानिक अनुसंधान के केंद्र थे। चारों वेदों, 108 उपनिषदों और ज्यादातर स्मृति-ग्रंथों की रचना सरस्वती-तट पर स्थित इन्हीं आश्रमों में हुई थी।

 सरस्वती को ज्ञान के लिए उर्वर अत्यंत पवित्र नदी का दर्ज़ा प्राप्त था। ऋग्वेद में इसी रूप में इस नदी के प्रति श्रद्धा-निवेदन किया गया है। सरस्वती में आई प्रलयंकर बाढ़ के बाद अधिकांश नगर और आश्रम गंगा और जमुना के किनारों पर स्थानांतरित तो हो गए, लेकिन जनमानस में सरस्वती की पवित्र स्मृतियां बची रहीं। इतिहास के गुप्त-काल में रचे गए पुराणों में उसे देवी का दर्जा दिया गया। उसके बाद अन्य देवी देवताओं के साथ सरस्वती की पूजा और आराधना भी आरम्भ हो गई। सरस्वती की पूजा वस्तुतः आर्य सभ्यता-संस्कृति, ज्ञान-विज्ञान, गीत-संगीत और धर्म-अध्यात्म के कई क्षेत्रों में विलुप्त सरस्वती नदी की भूमिका के प्रति हमारी कृतज्ञता की अभिव्यक्ति है।

                                                     लेखक - ध्रुव गुप्ता
Tags

Post a Comment

0Comments
Post a Comment (0)