ज़ुल्मी काहे को सुनाई ऐसी तान रे !
भारतीय शास्त्रीय संगीत के युग-पुरूष, शहनाई के जादूगर भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की हरएक सांस संगीत को समर्पित थी। बिहार के एक छोटे से कस्बे डुमरांव में जन्मे खां साहब ने बनारस को अपनी कर्मभूमि बनाई और आजीवन संगीत में मुक्ति की तलाश करते रहे। इस मुक्ति की खोज में वे शादी-ब्याह की महफ़िलों से लेकर संगीत के अंतरराष्ट्रीय मंचों तक शहनाई बजाते रहे। काशी विश्वनाथ मंदिर के वे अधिकृत शहनाई वादक थे। हिंदी फिल्म 'गूंज उठी शहनाई' और 'स्वदेश' तथा सत्यजीत रे की बंगला फिल्म 'जलसाघर' में भी उन्होंने शहनाई का जादू बिखेरा था। फिल्मकार गौतम घोष ने उनके संगीत की अंतर्दृष्टि का स्पर्श करने वाली एक बेहतरीन फिल्म 'meeting a milestone' बनाई थी। अपनी तमाम उपलब्धियों के बावज़ूद खां साहब अपनी संगीत-साधना से संतुष्ट नहीं थे। एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था - 'अभी सच्चा सुर लगा ही कहां है ? उसी की तलाश में तो हम इतने बरस से बजा रहे हैं । जब सच्चा सुर लगा जाएया तो समझिएगा कि हम पहुंच गए बाबा विश्वनाथ की शरण में।' पता नहीं शहनाई के सुर मृत्यु के बाद उन्हें कहां तक ले गए, लेकिन हमारे दिलों की गहराई में तो वे कब के पहुंच गए थे। उनकी निश्छल मुस्कान, उनकी फ़कीराना ज़िंदगी और सुरों के प्रति उनकी दीवानगी आने वाली संगीत पीढ़ियों का मार्ग प्रशस्त करती रहेंगी। उनकी जन्मतिथि पर हमारी हार्दिक श्रधांजलि !
लेखक- ध्रुव गुप्ता