‘भेड़ियो’ के पौरुषत्व का ‘कीड़ा’-उठाना होगा इसको मिटाने का ‘बीड़ा’

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कौन हूँ मैं”..... क्यूँ मौन” हूँ मैं....
मानो रची है समीप मेरे लाल रं-गोली
क्या खेली है मैंने खून-की-होली”
पूंछती हूँ खुद से क्यूँ “बोर्न” हूँ “मैं”
क्यूँ युगो-युगो से “मौन” हूँ मैं

चलो बताती हूँ अपना परिचय ...मैं हूँ अभागी” भारतीय नारी
लूटी जिसकी अस्मिता ....आज नहीं....कल नहीं.... हर युग मे बारी-बारी
कभी लूटी” मै निर्भया” बनके .... कभी बनके गीतिका
आरुषि” के जीवन मै ग्रहण” कुछ ऐसा लगा
निर्लज्ज” हो गयी मधुमिता

               ‘बेहोशी-के-चादर मे, बेहवास-बैसुध हो                  
                      क्यूँ खूनी-लथपथ मे बेखबर पड़ी हूँ मैं                           ना जाने जीवन के किस “मोड” पर खड़ी हूँ मैं

लज्जा-शर्म-मर्यादा नारी का गहना” सब कहने की बात
कलयुगी-दौर मे हो गई देखो हैवानियत की सारी हदें पार ....
वहसी-दरिंदे बेदर्दी से मुझे नौचते आज L L L
क्यूँ करते हो आप अपनी माँ’…’बहन’… जीवन-संगिनी बेटी पर नाज’?
दादा-नाना-बाप-पिता-ससुर-चाचा-मामा-भतीजा-भांजा रिश्तो को बदनाम कर करते घिनोना पाप  L L

नहीं सहूँगी मे अब ये असहनीय पीड़ा’…… मिटाना ही होगा इन भेड़ियो के पौरुषत्व का कीड़ा
उठ जा भारतीय नारी ...तू ही दुर्गा....तू ही काली .... तुझे ही बनना होगा अपने लज्जा के पुष्प का माली J

------ रोहित श्रीवास्तव ------ 

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