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मैं तेरे सुख-दुख का साथी
‘मांग का सिंदूर’ तेरा
तेरी ‘ग्रहस्थी का सारथी’
उपवास तेरा...कामना तेरी....
देती मुझे एक ‘अद्भुत शक्ति’
समर्पण तेरा मेरे प्रति
सचमुच लगता जैसे ‘ईश्वरीय-भक्ति’
‘पति-पत्नी’ का रिश्ता देखो ‘सदियों-पुराना’
इस ‘पवित्र’ एवं ‘अटूट-बंधन’ को हमे साथ निभाना
बने हम एक-दूसरे के लिए .....एक-दूजे के पूरक
‘सुखी-ग्रहस्थ-जीवन’ से
क्या बड़ा होगा कोई ‘तीरथ’
--- रोहित श्रीवास्तव ----