'मोदी-नीति' का एक और 'अचूक' निशाना ......

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दुनिया के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश भारत की विदेश नीति के संदर्भ मे एक बात सदियो से कही जा रही है कि यहा सामान्यतः प्रति 5 साल मे सत्ता का स्थानांतरण तो होता है परंतु भारतीय-विदेश-नीति मे कोई खासा परिवर्तन नहीं होता। अगर बात की जाए पूर्व प्रधानमंत्रियो की तो प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से लेकर डॉ मनमोहन सिंह की विदेश-नीति प्रत्यक्षतः बड़ी नपि-तुली और लचीली दिखाई देती है। हालाकि श्रीमति इन्दिरा गांधी और श्री लाल बहादुर शास्त्री ने बेशक इस छोर पर थोड़ी आक्रामकता का परिचय दिया था। पूर्वी पाकिस्तान का एक स्वतंत्र देश बांग्लादेश मे जन्म उसी बेबाक विदेश नीति का नतीजा था।  यहाँ पर यह बताना आवश्यक होगा की राजीव गांधी की सरकार के बाद केंद्र मे लगभग सभी गठबंधन वाली मजबूर सरकारे रही है। ऐसी सरकारो की अपनी ही कुछ मजबूरीया एवं कटिबद्धयता होती है जिसने भारतीय विदेश-नीति को सालो-साल कमजोर बनाए रखा है। पूर्व की यूपीए सरकार के मुख्य-घटक दल डीएमके का बार-बार (सरकार गिराने की धमकी के साथ) तमिल-मुद्दे पर श्रीलंका के लिए निर्धारित होने वाली विदेश-नीति को प्रभावित करना इसका जीवंत उदाहरण है।
वर्तमान मे केंद्र मे मोदी के नेत्रत्व वाली एनडीए की पूर्ण-बहुमत वाली सशक्त-एनडीए सरकार है जिसे सरकार चलाने के लिए किसी बैसाखी की आवश्यकता नहीं है। यह सरकार नीति (हो या फिर विदेश-नीति) बनाने लिए पूरी तरह से स्वतंत्र दिखाई देती है। हाल के कुछ दिनो मे यह  स्वतन्त्रता भारत सरकार के चाल-चलन मे प्रत्यक्ष रूप से क्रियान्वित भी दिखती है।

ऐसा महसूस होने लगा है की अब भारत मे भी दृढ़-विदेश-नीति बनने का सिलसिला शुरू हो गया है। हाँ, अगर मैं इसको विदेश-नीति न कहकर मोदी-नीति कहूँ तो बिलकुल गलत नहीं होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शपथ लेने से पूर्व ही उस मोदी-नीति पर कार्य करना शुरू कर दिया था। सर्वप्रथम उन्होने पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के वज़ीर-ए-आज़म को अपने शपथग्रहण समारोह मे आमंत्रित कर भारत ही नहीं दुनिया के राजनीतिक पंडितो और बुद्धिजीवियों को चौका दिया था। गौरतलब है पूर्व की मनमोहन सरकार पड़ोसी देशो के साथ अपने सामरिक रिश्ते बनाने मे पूरी तरह से नाकामयाब रही थी। यहाँ तक कि भारत से नेपाल और श्रीलंका जैसे मैत्रिक देश भी नाखुश थे। मोदी की नेपाल और भूटान यात्रा ने दोनों देशो के भारत के साथ संबंधो की एक नयी इबारत लिखने की शुरुआत जरूर की है। मोदी को यह बात मालूम है अगर देश को विकास की राह पर ले जाना है तो उन्हे अपना पड़ोस भी दुरुष्त करना होगा उसी  कवादत मे वह भारतीय प्रधानमंत्री के तौर पर 17 साल बाद नेपाल के दौरे पर गए। यह दौरा कई मानो मे ऐतिहासिक रहा चाहे वो नेपाल प्रधानमंत्री द्वारा प्रोटोकॉल तोड़ कर भारतीय प्रधानमंत्री को एयरपोर्ट पर स्वागत करना हो या फिर नरेंद्र मोदी का नेपाली संसद मे भाषण। गौरतलब है यह नेपाल के इतिहास मे पहला वाक़या था की किसी गैर-नेपाली प्रधानमंत्री ने नेपाली संसद को संबोधित किया हो। भारत के लिए यह गौरवशाली क्षण था।
मोदी का जापान दौरा भी भारतीय-प्रपेक्ष मे कारगर साबित हुआ। भारत और जापान ने कई महत्वपूर्ण संधियो पर हस्ताक्षर किए। जापान ने अगले पांच सालो में भारत में निजी और सार्वजनिक क्ष्त्रो में 34 अरब डॉलर का निवेश करने का ऐलान भी किया। जापान सर्वदा भारत का मित्र देश रहा है मोदी भली-भांति अपनी जापान-यात्रा के महत्व को समझते थे। इसको मोदी-नीति की सफलता ही कहा जाएगा कि उन्होने अपने पहले ही दौरे मे जापान के साथ सामरिक आर्थिक और वैश्विक रिश्तो को एक नया आयाम देने की कोशिश की है।

मोदी का पाकिस्तान के साथ हूरियत-मुद्दे पर पाकिस्तान के साथ सचिव-स्तर वार्ता स्थगित करना उसी मोदी-नीति का हिस्सा है। भारत ने दो-टूक शब्दो मे पाकिस्तान के हुक्मरानो को संदेश दे दिया है या तो आप हमसे बात करे या फिर उनसे। दोहरा-रवैया बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग की भारत-यात्रा मोदी के लिए एक परीक्षा से कम नहीं थी। जहां चीन की सेना लगातार लद्दाख मे अतिक्रमण का गंदा खेल जारी रखे हुए है उसी वक़्त मे चीनी राष्ट्रपति का दौरा मोदी के लिए चुनौतीपूर्ण था। मोदी ने उस चुनौती का सफलतापूर्वक सामना भी किया है। यह सभी को ज्ञात है ड्रैगन भारत से हर स्तर मे बहुत आगे है। भारत कभी भी चीन के साथ युद्ध की स्थिति मे नहीं जाना चाहेगा परंतु मोदी ने चिनफिंग को सीमा और अन्य मुद्दो पर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए इशारो मे जता भी दिया है कि भारत भी ऐसी नापाक हरकते एक सीमा तक बर्दाश्त करेगा। भारत और चीन ने कुल 12 समझौतों पर हस्ताक्षर किए साथ ही साथ चीन अगले पांच सालों में भारत मे 20 अरब डॉलर का निवेश करेगा।
अंततः निष्कर्ष मे सिर्फ इतना कहना चाहूँगा कि मोदी-नीति के विभिन्न रंगो का ही कमाल है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए शुभ-संकेत दिखने लगे है। मोदी के आने से निवेशको मे पूर्व की अपेक्षा अवश्य ही विश्वास बढ़ा है। महंगाई-डायन पर नियंत्रण करने का प्रयास जारी है। इसमे तनिक भी संशय नहीं है अगर मोदी इसी तरह अचूक निशाने लगाते रहे तो सच मानिए अच्छे दिन अब दूर नहीं।  JJ

लेखक : रोहित श्रीवास्तव


(आलेख मे प्रस्तुत विचार निजी है)                         
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