सुनो क्रांतिवीर!!
सिंघनाद तुम्हारी
एक बार ज़रूर मजबूर कर देती है,
सोचने के लिए,
जब जंगलों की तहों से
इंसानी दर्द की कहानी ढूंढ लाते हो
हम अंधों को दिखाने के लिए,
मैं हैरान होता हूँ कभी सोच कर
के कितने मील नाप दिये होंगे
तुम्हारे समझदार पैरों ने,
तुम्हारी आवाज़ में
समाज की सच्चाई ने
जो ठहराव सींचा है,
कई जन्म लगेंगे मुझे समझने में,
मैं भी जवाब चाहता हूँ,
तेरे मन से उपजे सवालों का,
हिसाब चाहता हूँ हर षड्यंत्र का,
कुशासन द्वारा बटे हर मृत्युदंड का,
लेकिन सुनिए, मुझसे नहीं होगा
वो क्या है के मैं आम आदमी हूँ,
मैं सड़क के बच्चों को देख
अपने बेटे सा चेहरा पहचान लेता हूँ ,
और भयाक्रांत हो
अपना ध्यान भटकाने की कोशिश करता हूँ
देखता हूँ जब,
नरकंकाल से जीवों को तो चैनल बदल देता हूँ,
लेकिन सोच नहीं बदलता,
मैं जानता हूँ के कुछ होना चाहिए,
कुछ सही, कुछ परिपूर्ण ,
एक आखिरी उपाए.. जो अजन्मा सा है,
मैं जानता हूँ,
के एक बार फिर तुम क्रांति लाओगे,
स्कूल बंद होंगे, खेत जलेंगे, औरते विधवा होंगी बच्चे अनाथ होंगे,
ये तो बस आहुति भर क्रांति रूपी इस महयज्ञ में,
फिर नए राजा आएंगे, नए विचार नए दरबार लगेंगे,
फिर एक बार तुम सा ही कोई और क्रांति का बीज बोएगा,
उस वक़्त तुम वज़ीर होगे, सत्ता का भोग लगाते,
मद में चूर हो, नए नरसंघार रच जा रहे होगे,
फिर से स्कूल बंद होंगे,
खेत जलेंगे,
औरते विधवा होंगी बच्चे अनाथ होंगे,
ये तो बस आहुति भर क्रांति रूपी इस महयज्ञ में,
अब सुनो !! बात मानो,
ज़्यादा दूर की कौड़ी मत लगाओ,
जिस आदिवासी के घर में क्रांति का बीज जमा के आतें हो
उसके हाथ में बंदूक के बजाए
गांधी की न सही मार्क्स की ही एक किताब दे आओं ।
मनु शर्मा