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आज गणतंत्र दिवस की सुबह के साथ हमें हमारे स्कूल के दिन याद आ गए। मन हुआ कि चलो विध्यार्थी नहीं रहे तो क्या हुआ लेकिन विद्यालय पहुंचकर देश के इस महान पर्व की क्रियाओं में शामिल तो हुआ ही जा सकता है। मै बिना मन मारे अपने विद्यालय पहुँच गई और वहां हमेशा की तरह झंडा रोहण किया गया और तिरंगे के लहरने के साथ ही हर भारतवासी की तरह मेरा सीना भी गर्व से चौड़ा हो गया, पर अचानक उसी पल देश की वो तमाम तस्वीरें एक-एक करके आँखों के सामने आती चली गई। मैंने उँगली फैलाकर गिनना शुरू किया 2 जी घोटाला, CWG घोटाला, NHRM घोटाला, कोयला घोटाला, नरेगा घोटाला ,आदर्श घोटाला,बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज घोटाला और धीरे धीरे उँगली के अंको की संख्या ख़त्म हो गई पर लिस्ट अभी भी बाकी थी। अन्दर की आत्मा, फैले सीने के साथ ही सिमटने लगी, विचारों के भवर चिल्ला चिल्लाकर ये सवाल करने लगे कि कही नैतिक मूल्यों को सिखाते-सिखाते, हम खुद तो इन्हें नहीं भूल गए। आखिर गर्व किस पर किया जाये और क्यों?
उस भारत पर गर्व क्यों किया जाए जहाँ इतनी प्रगति के बाद भी हम जात-पात की जंजीरों में जकड़े हुए हैं। उस भारत पर गर्व क्यों किया जाए जहाँ आज भी जन्म लेने से पहले ही लडकियों का जीवन या तो ख़त्म कर दिया जाता है या ता उम्र वो बोझ के साथ पाली जाती हैं। उस भारत पर गर्व क्यों किया जाए जहाँ आज भी बचपन चौराहों पर भीख माँगता रहता है और मानवता की मिशाल कहे जाने वाले हम जैसे लोग ही उन्हें दुत्कारते नज़र आते हैं। उस भारत पर गर्व क्यों किया जाए जहाँ हजारों महिलाओं की आबरू रोज तार-तार की जाती है। उस भारत पर गर्व क्यों किया जाए जहाँ इन्साफ और आजादी के नाम पर उठने वाले हर एक बड़े आन्दोलन कागज़ के पन्नों पर सिमट कर रह जाते हैं। उस भारत पर गर्व क्यों किया जाए जहाँ अपनी आज़ादी पर उठने वाली हर एक आवाज़ को उठने से पहले ही शांत कर दिया जाता है।
भारत का हर व्यक्ति इस बात से वाखिफ हो जाए कि उसके समाज में जात-पात, छुआ-छूत, भ्रूण-हत्या, बलात्कार जैसी न जाने कितनी जहरीली बीमारियाँ फैली है जो कैन्सर से भी ज्यादा खतरनाक है,जिससे वो लगातार केवल पतन की दुनिया की तरफ बढ़ रहा है। मजबूर कर दिया इन सब बुराइयों ने मुझे आज के दिन भी शर्म से अपना सर झुक लेने को। और तो और देश के राजनीतिक हालात तो और भी दुर्दश स्थिति में है। जनता अलग भाग रही है सरकार अलग भाग रही किसी में भी किसी प्रकार का समन्वय नहीं दिख रहा । समाज के इस खोखलेपन का फायदा सीमा के लोग लगातार उठाते रहते हैं। देश को जो आजादी इतनी मुश्किलों से मिली थी वो आज़ादी मुठ्ठियों से रेत की तरह निकलती नजर आ रही है, सच तो ये है कि गणतंत्र की जो ख़ुशी हर भारतवासी को महसूस करनी चाहिए वो आज नजर नहीं आई। मै देश सुधारने का ठेका नहीं लूंगी क्योंकि मेरा मानना है कि अगर हर व्यक्ति अपने को सुधारने का ठेका ले ले, तो अपने आप हालात सुधर जायेंगे और इसीलिए आज केवल मै अपने बदलाव का ठेका लूंगी।
जय हिन्द
जय भारत
लेखक-स्वाती गुप्ता