आखिर कब तक चलेगा दुआओं और कैंडल मार्च का सिलसिला

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१६ दिसम्बर २०१२ को दिल्ली में हुए सामूहिक बलात्कार ने मानो जैसे देश को झकझोर के रख दिया था और उसी के साथ “निर्भया” को इन्साफ दिलाने के लिये देश के हर शहर, गली और चौराहे से इन्साफ के गुहार की आवाज़ें आने लगी थी, असल में १६ दिसम्बर को हुआ ये काण्ड इतना निर्र्मम था कि जहाँ देश की जनता की सहानभूति “निर्भया” के साथ जुड़ी वहीँ लोगो का गुस्सा भी ज्वालामुखी की तरह फूटा और लोगो ने पूरे देश में कैंडल मार्च निकालकर शांतिपूर्ण तरीके से रोष से भरी हुई कई रैलियां भी निकाली, इस जघन्य काण्ड के बाद मानो दिल्ली क्या पूरा देश महिलाओं की सुरक्षा को संवेदनशील तरीके से देखने लगा और इसके लिये कई नियम,क़ानून और सुविधाओं का भी जन्म हुआ |
  १९ तारीख को जैसे ही “गुडिया” के साथ हुए बलात्कार का मामला सामने आया वैसे ही पता चल गया कि बनाये गये सभी नियम,क़ानून और सुविधाएँ खोखली हैं तो फिर से इस तरह के दुआओं और कैंडल मार्च से क्या फायदा होने वाला है | ये किस गृह के प्राणी हैं जो स्त्री को इस तरह नोचते-फाड़ते है जिस तरह कसाई मरे हुए जानवर को भी नहीं काटता होगा, ऐसे प्राणी किसी भी तरह कि दया के हकदार नहीं होने चाहिये जो एक पाँच साल कि बच्ची के साथ भी हैवानियत का गन्दा खेल खेलने से भी संकोच नहीं करते हैं |
  हम जानते हैं कि हम पशु से इंसान बने हैं मगर हमे ये सुनिश्चित करना होगा कि हम ऐसे कुकृत्यों के द्वारा वापस पशु न बन जायें, ये वक्त अब सिर्फ देश कि परिस्थितियों पर विचार करने का नहीं रहा, जब अपराध अपने चरम पर है और प्रशाशन भी उनको दिमागी बीमार के नाम पर उनको छिपाने या उनसे अपना दामन बचाता दिख रहा है , शायद वक्त की यही दरकार है कि हम इन दरिंदों के प्रति “महात्मा गांधी” के पगचिन्हो पर न चल कर “भगत सिंह” की नजरों से इन्साफ का तरीका अपनायें वरना अब वो दिन दूर नहीं, जब बड़े-बुजुर्ग हमारी माताओ-बहनों को “सदा सुखी रहो” के आशीर्वाद की जगह “सदा इज्ज़त सलामत” रहने का आशीर्वाद देते नज़र आयेंगे |
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