१९ तारीख को जैसे ही “गुडिया” के साथ हुए बलात्कार का मामला सामने आया
वैसे ही पता चल गया कि बनाये गये सभी नियम,क़ानून और सुविधाएँ खोखली हैं तो फिर से
इस तरह के दुआओं और कैंडल मार्च से क्या फायदा होने वाला है | ये किस गृह के
प्राणी हैं जो स्त्री को इस तरह नोचते-फाड़ते है जिस तरह कसाई मरे हुए जानवर को भी
नहीं काटता होगा, ऐसे प्राणी किसी भी तरह कि दया के हकदार नहीं होने चाहिये जो एक
पाँच साल कि बच्ची के साथ भी हैवानियत का गन्दा खेल खेलने से भी संकोच नहीं करते
हैं |
हम जानते हैं कि हम पशु से इंसान बने हैं मगर हमे ये सुनिश्चित करना
होगा कि हम ऐसे कुकृत्यों के द्वारा वापस पशु न बन जायें, ये वक्त अब सिर्फ देश कि
परिस्थितियों पर विचार करने का नहीं रहा, जब अपराध अपने चरम पर है और प्रशाशन भी
उनको दिमागी बीमार के नाम पर उनको छिपाने या उनसे अपना दामन बचाता दिख रहा है ,
शायद वक्त की यही दरकार है कि हम इन दरिंदों के प्रति “महात्मा गांधी” के पगचिन्हो
पर न चल कर “भगत सिंह” की नजरों से इन्साफ का तरीका अपनायें वरना अब वो दिन दूर
नहीं, जब बड़े-बुजुर्ग हमारी माताओ-बहनों को “सदा सुखी रहो” के आशीर्वाद की जगह
“सदा इज्ज़त सलामत” रहने का आशीर्वाद देते नज़र आयेंगे |
