मेरी आँखों को इतना रुलाने का शुक्रिया।

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मेरी ऐसी तो  तुझसे कोई चाह न थी लेकिन,
इस दर्द से मेरे दिल को दुखाने का शुक्रिया।
ऐसे ख्वाब कभी पले तो नहीं थे इस दिल में,
पर इस दिल को ऐसे सपने दिखाने का शुक्रिया।
चाहत हुई कि हर सपना सच की स्याह बने,
पर इन सपनों को कांच की तरह बिखराने का शुक्रिया।
रौशनी से डर लगता है, जगमग जहाँ ये चुभता है,
मुझे अंधेरों में इतना बसाने का शुक्रिया।
भीड़ में भी अब मुझे ये शहर अकेला लगता है,
इस दिल को इतना तन्हा बनाने का शुक्रिया।
जिन्दा है पर जिंदगी नहीं,ये हाल है जिंदगी का,
ऐसी जिंदगी को मुझसे मिलाने का शुक्रिया।
मेरी कलम कांपती है अब इन कागजों पर चलने से,
लिखावट भी धुल जाती है इन आंसुओं के घुलने से,
मेरी आँखों को इतना रुलाने का शुक्रिया।

Written By - Swati Gupta
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