मुझे आजादी चाहिए

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मैं अपने ही घर में कैद हूँ
मुझे अपनों से ही आजादी चाहिए
रोती बिलखती सर पटकती रही मैं
अब मेरी आवाज को एक आवाज चाहिए
जी रही हूँ कड़वे घूँट पीकर
न मेरी राह में कांटे उगाइये
मैं अपने ही घर में कैद हूँ
मुझे अपनों से ही आजादी चाहिए
पराये मेरे दुःख पे आंसू बहा रहे हैं
मेरे जख्मों पे फिर भी मरहम लगा रहे हैं
जिन्हें पाल पोसकर नाम दिया अपना
मरघट में वो ही मुझे जला रहे हैं
बिलायती बहू के जख्मों से नहीं डरती मैं
अपनों की नजरों से मरती हूँ मैं
सामर्थ मिल रही मेरे पगों को फिर भी
हर तूफान से अकेले ही लड़ती हूँ मैं
मैं अपने ही घर में कैद हूँ
मुझे अपनों से ही आजादी चाहिए -

 रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी''

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1Comments
  1. बिलायती बहू के जख्मों से नहीं डरती मैं
    अपनों की नजरों से मरती हूँ मैं
    सामर्थ मिल रही मेरे पगों को फिर भी
    हर तूफान से अकेले ही लड़ती हूँ मैं..

    वाह !, सशक्त अभिव्यक्ति.....

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