इशरत जहां मुठभेड़ मामले में सीबीआई द्वारा दाखिल आरोपपत्र को कुछ इस तरह से सबके सामने प्रस्तुत किया जा रहा है, मानों सीबीआई ने अपने आरोपपत्र में इशरत जहां सहित मारे गए लोगो को निर्दोष साबित कर दिया हो | आरोपपत्र में केवल इतना कहा गया कि 15 जून 2004 को अहमदाबाद के नरोदा इलाके इशरत जहां और उसके साथियों की कोई मुठभेड़ नहीं हुई थी बल्कि वो पहले से ही उनके कब्ज़े में थे जिन्हें मारकर मुठभेड़ की झूटी रिपोर्ट बना दी गयी |
अगर बात करें इशरत जहां सहित मारे गए लोगो की, कि आतंकवादी थे या नहीं तो आईबी द्वारा सीबीआई को लिखे गए पात्र में ये स्पष्ट किया गया है की 2009 में अमेरिका में पकडे गए पाकिस्तानी मूल के लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी डेविड कोलमैन हेडली ने अफबीआई के सामने दिए बयान में ये कुबूल किया है इशरत और उसके साथी लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े हुए थे और इशरत स्वयं एक फिदायीन थी, दुसरे तथ्यों के अनुसार सीबीआई के अधिकारी पकिस्तान में स्थित लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी मुज़म्मिल का फोन टैप कर रहे थे जिससे सुराग मिला की 26 अप्रैल 2004 को जीशान जौहर नाम का आतंकी अहमदाबाद आया है और दूसरी खबर 27 तारीख को अमज़द अली राणा के कालूपुल-अहमदाबाद रेलवे के सामने वाले होटल में होने की मिली थी, सीबीआई का कहना है कि पुलिस ने राणा को उठा किया और 15 जून 2004 को पूर्वी अहमदाबाद में मार गिराया | इन सब बातों को अगर मान लिया जाए तो यह तो सुनिश्चित ही हो जाता है कि वो आतंकी थे |
यह देश सुरक्षा का मामला है और अगर हम आतंवादियों के खिलाफ खुफिया जानकारी और शीर्ष कार्यवाही में लगी आईबी, पुलिस और सरकार पर ही दण्डात्मक कार्यवाही करेंगे तो इससे देश के खिलाफ कार्य करने वाले आतंकियों और देश के विरोधियों का हौसला निरंतर बढेगा | केंद्र सरकार देश की दो बड़ी सुरक्षा एजेंसीज को आमने-सामने रख कर भले ही अपना राजनितिक मकसद हल कर ले, पर इस कार्यवाही से आईबी की जो दुर्दशा होगी वो छुपी न रहेगी और इस कार्यवाही के बाद जिस तरह के आतंरिक खतरे उत्पन्न हो सकते हैं उनसे भी इन्कार नहीं किया जा सकता है |
केंद्र सरकार अपना राजनितिक मकसद सिद्ध करने के पीछे “गैरों पे करम अपनों पे सितम” जैसी स्तिथि बना रही है जिसका खामियाजा किसी न किसी दशा में आने वाले समय में देश की जनता को उठाना पड़ सकता है |