आसमान को सम्भाल लो ,
हवाओं को तुम बाँध लो ,
धरती हिल उठी है आज ,
भ्रष्टाचारियों के खिलाफ ,
"देश देहल उठा " है आज ..
आतंक का है केवल राज ,
सरफरोसी ख़त्म हो गई ,
अब तो केवल भूख रह गई ,
आज कानून बन गया तमाशा
जिसका दिल जब चाहे देख ले ,
नारी कि इज्जत ख़ाक हुई है ,
जिसका दिल जब चाहे लूट ले ,
ख़त्म हो गई आज इंसानियत ,
अब रह गई केवल दरिंदगी ,
लोगो का ईमान मिट गया ,
और मिट गई उसकी ताज़गी ,
इज्जत उसकी आज कोने में पड़ी ,
चाट रही है आज धुल और मिटटी ,
दिलों से दूर हो गई दूरियां उसकी ,
न कोई तार अब और न कोई चिठ्ठी ,
लेखक- संजय कुमार गिरि