अंततः केन्द्रीय
मंत्रिमंडल की मंज़ूरी पाकर खाद्ध सुरक्षा बिल कांग्रेस के लिए अगले आम चुनावों में
एक ब्रम्हास्त्र की तरह तैयार हो ही गया | इस योजना के तहत देश के 125 करोड़ लोगों
में से 67 प्रतिशत को रियायती दर पर खाधान्न उपलब्ध कराने का वायदा किया गया है, लेकिन कांग्रेस ने इसके
लिए जिस हड़बड़ी का परिचय दिया उसकी वजह से इस बिल का सवालों के घेरे में आना लाज़मी है
| आखिर संप्रग सरकार को इस खाद्य सुरक्षा बिल की आवश्यकता पिछले नौ वर्षों से क्यों
महसूस नहीं हुई और जब संसद का मानसून सत्र इस महीने प्रारंभ होना है तो इस बिल के लिए
अध्यादेश की आवश्यकता क्यों पड़ गयी |
भारत आबादी की दृष्टी से दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा
देश है अधिक आबादी वाले विकासशील देशों में खाद्य सुरक्षा एक बड़ी चुनौती की तरह होती
है भारत में आज भी एक तिहाई की आबादी गरीबी रेखा के नीचे है | माना पिछले 20 सालों
में आर्थिक विकास की दर अच्छी रही है मगर फिर भी इस वैश्वीकरण और विकास का गरीबों को
कोई फायदा नहीं हुआ है जिसके कई कारण हैं जिनमे भ्रष्टाचार प्रमुख है | खाद्य सुरक्षा
उस स्तिथि को कहते है जब देश के हर नागरिक को उचित समय पर एक सम्पूर्ण खुराक मिले जो
उसे स्वस्थ रखने में सक्षम हो, जिस स्तिथि से अभी हमारा देश बहुत दूर है | यह हमारे
देश का एक अतंत दुखद सत्य है की जहां के गोदामों में पड़ा लाखों टन अनाज चूहों, जानवरों
और निक्कमी कार्यप्रणाली की भेंट चढ़ जाता है वहां हर रोज लाखों इंसान भूंखा सोने और
भुखमरी की मौत मरने को मजबूर है सच तो ये है की नेताओ, अधिकारियों और वितरको के भ्रष्टाचार
की मेहरबानी की बदौलत गरीब जनता को उतना लाभ नहीं मिल पता जितना उन्हें वास्विकता में
मिलना चाहिए | गल्ले का स्टाक सरकारी गोदामों में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है और यदि
वितरण प्रणाली ठीक हो तो कोई भी भूंखा नहीं रह सकता है |
पिछले वर्षो
में सरकार ने खाद्य सुरक्षा को बल देने वाली जितनी योजना जैसे- सरकारी स्कूलों में
मिड डे मील, मनरेगा योजना और बीपील परिवारों को कम दामों में गेंहू और चावल उपलब्ध
कराने वाली योजनाएँ चलायी, परन्तु वितरण प्रणाली में व्याप्त भ्रष्टाचार के रहते इनका
भी आपेक्षित लाभ गरीबों को न मिल सका |
इन परिस्थितियों में यह कैसे सुनिश्चित किया जा
सकता है कि खाद्ध सुरक्षा बिल ले आने से इसका आपेक्षित लाभ बिना किसी भ्रष्टाचारी हस्तक्षेप
के गरीबों तक पहुँच पायेगा, ये वैसी ही बात हो गयी कि किसी श्रंख्लाबध कार्य में प्रथम चरण में असफल होने
के बावजूद अगले को करने निकल पड़े |
