सारी नज़रों से दरकिनार हुआ

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सारी नज़रों से दरकिनार हुआ 

मैं गए वक़्त का अखबार हुआ 



एक इशारे से भी निबट जाता 

उनसे शिक़वा तो बेशुमार हुआ 



मैं अदाकार तो अच्छा था मगर 
मुझसे हटके मेरा किरदार हुआ 

रास्तों ने की परवरिश अपनी 
ये सफ़र कितना शानदार हुआ 

जितने रिश्तों को आज़माया था 
सबकी बुनियाद में बाज़ार हुआ 

कोई सरमाया लूट लो मेरा 
मेरा सपनों का कारोबार हुआ 

कोई जंगल तो मेरे अन्दर था 
मैं जो एक घर का तलबगार हुआ 

उनके आने के बाद भी कितना 
उनके आने का इन्तज़ार हुआ


 कवि- ध्रुव गुप्ता (आई.पी. एस )
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