हमको अपनी तरह बना देना

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हमको अपनी तरह बना देना 
शक़्ल कुछ तो मगर ज़ुदा देना 

रात है, चांद है, हवा है अभी 
हमको आवाज़ तो लगा देना 

खोल आया हूं सारे दरवाज़े 
आज हर सिम्त से हवा देना 

रूह छू लूं तुम्हे पता न चले 
इतना चुपके से रास्ता देना 

ख़ुद को हमने सज़ा सुनाई है 
आप इल्ज़ाम बस लगा देना 

पहले तिनका सहेजना सीखो 
आशियां फिर कभी जला देना 

ज़िंदगी भर तुम्हें बुरा न लगे 
इस सलीके से सब भुला देना 

टूट जाए तो कोई शोर न हो 
आंख से यूं कभी गिरा देना 

दिन है बाकी अभी तो सोने दो 
रात जब आए तो जगा देना 


लेखक  - ध्रुव गुप्त 

                                                                   
                                                                    पेंटिंग - अजामिल

 
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