मै हूँ लक्ष्मी और मेरा इस दुनिया में कोई नहीं
मेरी पीड़ा मेरी व्यथा समझने वाला इस जहाँ में कोई नहीं है
बचपन में ही शुरू हो गयी थी मेरी जद्दोजहद खुद को लेकर
कि भाग्वान भी रूठ गया था मुझे बस आस देकर
वो मासूम पलके तब से अब तक सोई नहीं
मै हूँ लक्ष्मी और मेरा इस दुनिया में कोई नहीं
समाज को मुझसे बेहतर कौन जानता है
कि किताब पकड़ने कि उम्र में पैरों में घुंघरू कौन बांधता है
जब बड़ी हुई तो ये जाना की कभी खुद से लड़ाई
तो कभी खुद की लड़ाई क्या होती है
मेरी जिंदगी में रात के बाद शाम और शाम के बाद रात होती है
क्या समझती नहीं हूँ समाज के उन इशारों को
अब जीना आ गया है मुझे अब मै बच्ची नहीं रही
मै हूँ लक्ष्मी और मेरा इस दुनिया में कोई नहीं |
लेखक- अपूर्व सिंह