पुण्यतिथि / जयशंकर प्रसाद : आती है शून्य क्षितिज से क्यों लौट प्रतिध्वनि मेरी ?

RAFTAAR LIVE
0


आज हिंदी के महान कवि, नाटककार, कथाकार, उपन्यासकार, निबंधकार और हिंदी कविता की छायावादी धारा के मुख्य स्तम्भ स्वर्गीय जयशंकर प्रसाद की पुण्यतिथि है ! उनकी कालजयी कृतियों से हम सब परिचित हैं, लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि उन्होंने 'प्रसाद' उपनाम से कुछ ख़ूबसूरत ग़ज़लें भी कही थीं। जयशंकर प्रसाद की स्मृतियों को नमन, उनकी एक ग़ज़ल के साथ !

सरासर भूल करते हैं उन्हें जो प्यार करते हैं 
बुराई कर रहे हैं और अस्वीकार करते हैं 

उन्हें अवकाश ही इतना कहां है मुझसे मिलने का 
किसी से पूछ लेते हैं यही उपकार करते हैं 

जो ऊंचे चढ़ के चलते हैं वे नीचे देखते हरदम 
प्रफ्फुलित वृक्ष की यह भूमि कुसुमगार करते हैं 

न इतना फूलिए तरुवर सुफल कोरी कली लेकर 
बिना मकरंद के मधुकर नहीं गुंजार करते हैं 

'प्रसाद' उनको न भूलो तुम तुम्हारा जो भी प्रेमी हो 
न सज्जन छोड़ते उसको जिसे स्वीकार करते हैं

ध्रुव गुप्ता द्वारा 
Tags

Post a Comment

0Comments
Post a Comment (0)