शायद कि याद भूलने वाले ने फिर किया
हिचकी इसी सबब से है गौहर लगी हुई !
जब भी कभी राज दरबारों, रियासतों और संगीत के दीवाने भद्रजनों की संगीत की यादगार महफ़िलों का इतिहास लिखा जाएगा, गौहर जान का जिक्र उनमें ज़रूर आएगा। गौहर देश की पहली गायिका थीं जिन्होंने सुगम और अर्द्ध्शास्त्रीय गायिकी को बेशुमार शोहरत और ग्लैमर दिलाई। नवाब वाजिद अली शाह की दरबारी नृत्यांगना मलिका जान उर्फ़ बड़ी जान उर्फ़ विक्टोरिया और आर्मेनियन पिता विलियम की 1873 में जन्मी संतान गौहर की फनकारी, विद्वता और अदाओं ने संगीत प्रेमियों में जैसी दीवानगी पैदा की थी, वह उस दौर की दुर्लभ घटना थी। वह देश की पहली ऐसी गायिका थीं जिनके गीतों का रेकर्ड बना था। द ग्रामोफोन कंपनी ऑफ इंडिया ने उनके हिंदुस्तानी, बंगला, गुजराती, मराठी, तमिल, अरबी, फ़ारसी, पश्तो, अंग्रेजी और फ्रेंच गीतों के एक-दो नहीं, छह सौ डिस्क निकाले थे। उनकी कुछ चुनी हुई रिकॉर्डिंग एच.एम.वी के ' चेयरमैन'स चॉइस ' और ' सोंग्स ऑफ मिलेनियम ' सीरीज में आज भी उपलब्ध है। गौहर ठुमरी, दादरा, चैती, कजरी, ग़ज़ल, भजन और तराना गायिकी में सिद्धहस्त थीं। उनकी जो कुछ ठुमरियां आज भी उपलब्ध हैं, उनमें प्रमुख हैं - रस के भरे तोरे नैन, श्याम मोरी बैयां गहो ना, मेरे दर्द-ए-जिगर, मोरा नाहक लाए गवनवा, जबसे गए मोरी सुध ना लीन्ही। संगीत में उनका दबदबा ऐसा था कि देश की तत्कालीन रियासतों और संगीत सभाओं में उन्हें बुलाना प्रतिष्ठा का प्रश्न हुआ करता था। 1911 में दिल्ली दरबार में जार्ज पंचम के राज्याभिषेक में गौहर की फनकारी ने अंग्रेजों और दूसरे विदेशी मेहमानों को भी उनका प्रशंसक बनाया था। गौहर प्रेम में असफल होने के बाद आजीवन अविवाहित रहीं। प्रसिद्द शायर अकबर इलाहाबादी ने उनके बारे में कहा था - ' गौहर के पास शौहर के अलावा सब कुछ है।' बेगम अख्तर की वह प्रिय गायिका हुआ करती थीं, जिनसे प्रेरित होकर उन्होंने फिल्मों में अभिनय छोड़कर ग़ज़ल, ठुमरी और दादरा गायन को अपना कैरियर बनाया। देश के कई राज दरबारों से होती हुई अंत में गौहर 1928 में मैसूर के राजा की दरबारी गायिका बनी जहां 1930 में उनका इंतकाल हो गया।
लेखक - ध्रुव गुप्ता