खोया हुआ साम्राज्यः कानपुर

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भारत के अन्य सभी प्राचीन साम्राज्यों के समान कानपुर भी कभी एक महान राजा का साम्राज्य व राजधानी हुआ करता था । पुराणों की माने य यूं कहें कि कानपुर ही मानव जाती के प्रथम सम्राट की राजधानी था ।
कानपुर के पूर्व 5 मील गंगा तट पर जाजमऊ है जो अपने कर्म बल से इंद्र पदवी पाने वाले महाराज नहुष के पुत्र ययाति की राजधानी थाए भागीरथी के तट पर उनका किला गिरी हुई दशा में अब भी अतीत की सुधि दिलाता हैए राजा ययाति ने दैत्य गुरु शुक्राचार्य की मानिनी पुत्री देवयानी से विवाह किया था जिसनेे दैत्यराज वृषपर्वा की राजकुमारी शर्मिष्ठा को अपनी दासी बनाकर रखा था राजा ययाति का शर्मिष्ठा के साथ गुप्त सम्बन्ध देखकर देवयानी ने अपने पिता शुक्राचार्य से उनको वृद्ध हो जाने का श्राप दिलवाया थाए फिर राजा अपने व शर्मिष्ठा के पुत्र प्रसिद्ध पुरु से उसकी युवावस्था मांग कर जवान हो गए थे और अपनी काम वासना तृप्त करके फिर उन्होंने उसकी जवानी लौटा दी ।
राजा ययाति का सम्बन्ध कानपुर से था यह एक अन्य कथा द्वारा भी सिद्ध हो सकता हैए भोगनीपुर तहसील में मुगलरोड पर पुखरायां व घाटमपुर के बीच में यमुना जी के किनारे मूसानगर एक कस्बा है यहाँ मुक्तादेवी का प्राचीन मंदिर है, यही पर एक तालाब है जिसे देवयानी तालाब कहते है जैसा की ऊपर कहा जा चुका है, देवयानी ययाति की पत्नी थी ।
इन बातो से पता चलता है कि मूसानगर अतीत काल में शुक्राचार्य का आश्रम था मूसानगर मुक्तनगर का वैसा ही रूपांतर जान पड़ता है जैसे गाधिपुर से गाजीपुर ।

(स्रोत - कानपुर का इतिहास द्वारा नारायण प्रसाद अरोड़ा)

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