भारत की स्वतंत्र "विदेश नीति" :?? ) :)

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भारत की या सही मायनों मे स्पष्ट शब्दो मे कहु तो नरेंद्र मोदी जी की "विदेश नीति" बड़ी ही दिलचस्प होने वाली है।

जिसका एक नमूनाहम देख ही चुके है। एक तरफ वो अपने कट्टर प्रतिद्वंदी नवाज़ शरीफ को "शराफत" से हिंदुस्तान आने का न्योता देते है , पर उनके मनमाफिक (पाकिस्तान को मीडिया के हवाले से खबर) "नवाज़े" नहीं जाते ...... दूसरी तरफ वो चाइना को "पुचकारते" है .....ओबामा को "दुलारते" है।

हिन्दी को गौरान्वितऔर प्रसारितकरने के लिए विदेशी प्रतिनेताओ एवं राजनयिको से अपनी राष्ट्रभाषा हिन्दी मे संवादकरने का मील का पत्थरसाबित होने वाला निर्णय भी एक महत्वपूर्ण विदेश नीतिका हिस्सा ही है। मानो एक नए युग (नमो-युग) की शुरुआत होने जा रही।

आप को बताना चाहूँगा हर एक देश अपने विपक्षी देश के लिए एक विदेश नीति" निर्धारित करता है। वो देश राजनयिक और कूटनीतिक स्तर पर उसी "नीति" के अनुसार चलता है।

दुर्भाग्य ये है की शायद ही हिंदुस्तान की खुद की कोई "विदेश-नीति" है। अगर किसी भी प्रकार की कथाकथित "नीति" है भी तो वो भी कोई (अमेरिका जैसा) देश प्रभावी तौर पर "प्रभावित" करता है। पूर्व की यूपीए सरकार का "श्रीलंका" से लेकर "ईरान" एवं अन्य देशो के प्रति "कूटनीतिक रुख" इसका "प्रत्यक्ष" प्रमाण है।

पर जहा तक मेरी स्वयं की राजनीतिक समझ का सवाल है तो मुझे यही प्रतीत होता है मोदी जी "अमेरीकन-फूड" (जोकि मनमोहन जी का "मनपसंद" फूड ) से ज्यादा "चाइनिज-फूड" को तवज्जो देंगे

उनके इरादों से ऐसा भी लगता है की अब भारत की विदेश नीति किसी (अमेरिका) के दबाव मे बिलकुल प्रभावित नहीं होगी .... उन्होने ही कहा था "देश नहीं झुकने देंगे" देखते है वो झुकते है या “झुकाते" है अभी के हालात तो कुछ और ही तस्वीर बयान करते है भारत के नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री जी असमंजस मे है की पहले किस देश को प्राथमिकता दे.... ओबामा से लेकर नवाज़.... भूटान....वर्मा....श्रीलंका.... नेपाल सभी "नमो-नमो" का मानो जाप कर रहे है ...... और कह रहे है मोदी जी से "पधारो मारे देश " .....

मोदी जी अपने सभी छोटे से लेकर बड़े देशो को एक साथ लेकर चलना चाहेंगे ...पूर्व की यूपीए सरकार मे सभी पड़ोसी देशो के साथ भारत के संबंध इतने मधुर नहीं थे यहाँ तक नेपाल और श्रीलंका जैसे मित्र देश भी नाराज़ थे। उम्मीद है मोदी जी रिश्तो मे आई इस "कटुता" को भर पाएंगे और ऐसा "समन्वय" स्थापित होगा जिससे भारतीय उपमहाद्वीप खुशहाली और उन्नति के पथ पर दौड़ेगा ...... वो मोदी जी कहते है न "सबका साथ-सबका विकास" वैसे लाचार जनता की भी यही है "आस":

चलिये ये सब तो ख्याली पुलाव है ...... आगे आगे देखिये होता है क्या........

पर खुशी है भारत की "विदेश नीति होगी" अब शायद "स्वतंत्र" होगी ? :) :)

(रोहित श्रीवास्तव द्वारा )

(आलेख मे प्रस्तुत विचार निजी है)
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