दिल्ली सिर्फ देश की राजधानी ही नहीं है अपितु भारत का दिल भी है। देश की ‘दशा’ और ‘दिशा’ की रूपरेखा दिल्ली ही निर्धारित करती है। भारतीय राजनीति का ‘केंद्र’ है दिल्ली। शायद इतने तथ्य दिल्ली के महत्व एवं भारतीय प्रपेक्ष मे इसकी उपयोगिता स्थापित करने के लिए काफी है। पिछले कुछ दिनो से दिल्ली के अंदर सरकार बनाने के लिए जो राजनीतिक उठा-पटक शुरू हुयी है वो ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ ही नहीं बल्कि ‘शर्मनाक’ है।
सवाल उठता है ऐसे हालत के लिए कौन जिम्मेदार है? दिल्ली को ‘अनाथ’ किसने बनाया? कब मिलेगा दिल्ली को अपना ‘मुखिया’? कौन हैं दिल्ली के गुनाहगार ? बात अगर गुनहगारों कि की जाए तो सबसे पहला नाम आम आदमी पार्टी के चीफ़ अरविंद केजरीवाल का आता है। दिल्ली विधानसभा के नतीजो मे किसी को बहुमत नहीं मिल पाया था। काफी माथाचप्पी के बाद केजरीवाल ने इतिहास रचते हुए काँग्रेस के समर्थन के साथ दिल्ली मे आम आदमी पार्टी की सरकार बनाई थी। 49 दिन के बाद ही ‘जनलोकपाल बिल’ के समर्थन के मुद्दे पर उन्होने संयम खोकर जोश मे मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। उस समय 2014 के लोकसभा चुनाव सामने थे राजनीतिक विशेषज्ञो ने माना था कि केजरीवाल खुद को ‘शहीद’ दिखा कर उसका फायदा राष्ट्रीय-स्तर पर संसदीय चुनावो मे उठाना चाहते थे। पर ऐसा हुआ नहीं आम आदमी पार्टी को लोकसभा चुनावो मे मुह की खानी पड़ी और उनकी झोली मे केवल 4 सीट ही आयी थी। लोकसभा मे हार के बाद केजरीवाल दिल्ली की राजनीति मे वापस आ गए है और पिछले कुछ दिनो से दुबारा चुनाव की मांग कर रहे है।
गुनहगारों की सूची मे अगला नाम है माननीय उपराज्यपाल नसीब जंग साहिब का। कुछ हद तक इस असमंजस कि स्थिति के वह भी जिम्मेदार है। उन्होने दिल्ली की विधानसभा को भंग न करते हुए ‘राष्ट्रपति-शासन’ की सिफ़ारिश कर दी थी। शायद वो कुछ संख्त और सटीक कदम उठाने मे नाकामयाब रहे है।
अगर बात की जाए काँग्रेस और बीजेपी की तो राष्ट्रीय पार्टियां होते हुए उनकी ज़िम्मेदारी बड़ी थी। दिल्ली को अनाथ बनाने मे इन दोनों की भागीदारी बराबर है। दिल्ली मे 17 फरवरी 2014 को राष्ट्रपति शासन लग गया था उसके बाद ना काँग्रेस ने ना ही भारतीय जनता पार्टी ने दोबारा चुनाव की बात की है। उधर जहां काँग्रेस किसी भी हालत मे सरकार बनाने की स्थिति मे नहीं है फिर भीं उसने कभी खुले तौर पर दिल्ली मे दोबारा चुनाव का समर्थन नहीं दिया है। काँग्रेस पार्टी का तर्क था कि वो दिल्ली की जनता पर चुनावी ख्रचे नहीं थोपना चाहते पर सच्चाई ये है काँग्रेस अंदर से जानती है उनकी स्थिति दिल्ली मे ठीक नहीं है। पुन्र-मतदान उनके लिए घाटे का ही सौदा होगा।
दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी भी चुनाव के पक्ष मे नहीं है जोकि बड़ा आश्चर्यजनक है। लोकसभा चुनावो मे बीजेपी को दिल्ली की सारी सात सीटो पर शानदार जीत जीत मिली थी। तो फिर बीजेपी को चुनाव मे जाने का डर क्यूँ है? क्या उन्हे लगता है केंद्र की मोदी सरकार आम जनता की उमीदों के मुताबिक खरी नहीं उतरी है? यही बात बीजेपी को दिल्ली विधानसभा चुनावों मे नुकसान पहुंचा सकती है?भारतीय जनता पार्टी पीछे के रास्ते से ही सरकार क्यों बनाना चाहती है? बड़ा प्रश्न उठता है जब बीजेपी के पास 32 विधायक थे तब उन्होने सरकार बनाने से मना कर दिया था अब उनकी संख्या 29 है तो किस आधार पर पार्टी सरकार बनाने के पूरी तरह तैयार दिखती है। बीजेपी के दिल्ली प्रदेश के अध्यक्ष सतीश उपाध्याय ने प्रैस-वार्ता के दौरान इस बात के संकेत भी दिये है।
बरहाल वर्तमान की स्थिति यह है कि एलजी साहिब ने राष्ट्रपति को बीजेपी को सरकार बनाने के लिए न्यौता भेजने की सिफ़ारिश कर दी है। केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने एक और नया सगुफा छोड़ा है। पार्टी ने एक स्टिंग का विडियो जारी किया है जिसमे बीजेपी दिल्ली प्रदेश के उपाध्यक्ष शेर सिंह डागर को आप के विधायकों को 4 करोड़ की पेशकश करते हुए दिखाया गया है जिसने बीजेपी को थोड़ा बेक-फुट पर जरूर खड़ा कर दिया है। अब देखने वाली बात होगी दिल्ली कि राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा।