माना जाता है जब धरती पर मानव की उत्पत्ति हुई तो उसका आचरण किसी पशु के सामान ही था, फिर समय के साथ-२ उसने खुदको, अपनी जीवनशैली को और अपने पर्यावरण को विकसित किया । उसने अपनी जरुरत के हिसाब से वस्तुओं, तौर-तरीकों एवं सोंचको भी विकसित किया ।
समय बदला मानव लालसाएँ सामने आयीं, लोगो ने एक दुसरे की आज़ादी पर रोक लगानी चाही और वही से जन्म हुआ मानवाधिकारका, ये वो मौलिक अधिकार हैं जो हर व्यक्ति को समाज में स्वतंत्रता से जीने का अधिकार, जीवन और आजाद रहने का अधिकार,अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और कानून के सामने समानता एवं आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों के साथ ही साथसांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेने का अधिकार, भोजन का अधिकार काम करने का अधिकार एवं शिक्षा का अधिकार आदि शामिल हैं।
हर व्यक्ति को इन सब मौलिक अधिकार मिले होने बावजूद किसी-न-किसी रूप मे उसका शोषण होता रहता है जोकि समाज, मानवता और कानून के भी विपरीत है अगर हम इतिहास पर गौर डालें तो हम पायेंगे की मानवाधिकारों को बल देने की दिशा में समय-२ पर काफी सार्थक प्रयास हुए हैं, पर आज भी कुछ ऐसी विषम परिस्थितियाँ बनी हुई हैं जहां पर बहुत कुछ होना बाकी है । आज भी मानवाधिकार का पूर्ण और सकारात्मक उपयोग होने में कई अर्चने सामने आती हैं जो कि एक सभ्य समाज की मर्यादा को खंडित करती है जिससे आम लोगो में आज भी अपने अधिकारों को लेकर संशय की स्तिथि बनी रहती है और वो पूर्णतया मानवधिकार का सही उपयोग नहीं कर पाते हैं ।