पुण्यतिथि / माखनलाल चतुर्वेदी

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मुझे तोड़ लेना वनमाली, देना तुम उस पथ पर फेंक
मातृभूमि को शीश चढ़ाने जिस पथ जावें वीर अनेक !

'एक भारतीय आत्मा' के नाम से प्रसिद्द राष्ट्रीय चेतना के सर्वाधिक लोकप्रिय कवि स्व. माखनलाल चतुर्वेदी की कविताएं और लेख भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौर में आजादी के मतवालों की प्रेरणा हुआ करती थीं। वे स्वतंत्रता-पूर्व के भारत की एक समूची पीढ़ी को अनुप्राणित करने वाले कवि, लेखक और पत्रकार थे। असहयोग आन्दोलन और भारत छोड़ो आन्दोलन के सक्रिय सेनानी चतुर्वेदी जी ने आज़ादी के बाद सरकार का दिया कोई पद स्वीकार नहीं किया और आजीवन सामाजिक असमानता, शोषण और बुराईयों के खिलाफ लिखते रहे। महाकवि माखनलाल चतुर्वेदी की पुण्यतिथि (30 जनवरी) पर हमारी हार्दिक श्रधांजलि, उनकी एक कविता के साथ !

भाई, छेड़ो नहीं मुझे
खुलकर रोने दो
यह पत्थर का हृदय
आंसुओं से धोने दो
रहो प्रेम से तुम्हीं
मौज से मंजु महल में
मुझे दुखों की इसी
झोपड़ी में सोने दो।

कुछ भी मेरा हृदय
न तुमसे कह पावेगा
किन्तु फटेगा, फटे
बिना क्या रह पावेगा
सिसक-सिसक सानंद 
आज होगी श्री-पूजा
बहे कुटिल यह सौख्य
दु:ख क्यों बह पावेगा ?

हरि खोया है? नहीं
हृदय का धन खोया है
और, न जाने वहीं
दुरात्मा मन खोया है
किन्तु आज तक नहीं
हाय, इस तन को खोया
अरे बचा क्या शेष
पूर्ण जीवन खोया है !

पूजा के ये पुष्प
गिरे जाते हैं नीचे
वह आंसू का स्रोत
आज किसके पद सींचे
दिखलाती, क्षणमात्र
न आती, प्यारी किस भांति
उसे भूतल पर खीचें।


लेखक - ध्रुव गुप्ता 
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1Comments
  1. Right away I am going to do my breakfast, when having my breakfast coming
    over again to read more news.

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